Saturday, November 22, 2008

तिरंगे में लिपटा चाँद!!!


सन् 2008 का सूरज अस्त होने को हैं पर इस अस्त होते सूरज की लालिमा का रंग तिरंगे में रंगा हैं|
यह प्रभाव हैं मेरे महान देश 'भारत' के बदते हुए कदमो का!

14 नवम्बर,2008 -चाचा नेहरू का जन्मदिन और बाल दिवस(बच्चो का दिन) पर अब यह दिन हमारे लिए कुछ और खास हो गया हैं क्योकि इस दिन हमने चाँद को भी अपने रंग में रंग दिया हैं .....हमारा रंग-"तिरंगा"
अनेकता में एकता के प्रतीक और महान संस्कृतियो का उदगम -भारत अब जा पंहुचा हैं चाँद पर |और इसके साथ ही हमारा शुमार उन चंद देशो की फेहरिस्त में जुड़ गया हैं जो की चाँद को अपने रंग में रंग चुके हैं|

यह एक ऐसी सफलता हैं जिसे पाने के लिए अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश को भी अपनी आज़ादी के बाद 150 से अधिक वर्षो तक का इंतज़ार करना पड़ा था और उसी काम को हमारे देश के दृढ निश्चय वैज्ञानिको ने सिर्फ़ 60 साल के अन्तराल में कर दिखाया
यह बहुत बड़ी उपलब्धि हैं और इस पर हर देशवासी को गर्व हैं |

यह हमारे बदते हुए कदम अभी थमे नही हैं अभी तो हमने चलना सीखा हैं|

अभी तो नपी हैं मुट्ठी भर जमी ,
आगे तो सारा आसमान बाकि हैं|
अभी तो रंगा हैं तिरंगे में सिर्फ़ चाँद को,
आगे तो सारा ब्रहामांड बाकी हैं||

वाकई में देश के वैज्ञानिको ने अब अपना ध्यान केंद्रित कर दिया हैं चाँद पर पहले"भारतीये कदमो पर"
और यह सपना जल्द पुरा भी होने वाला हैं(समाचारों के मुताबिक सन् 2015 तक भारतीये कदम चाँद पर
पड़ जायेंगे) और दुसरे ग्रहों पर भी विशेष प्रकार के यान भेजने की तयारी की जा रही हैं|

यह तेजी से बदते कदम वाकई कबीले तारीफ हैं और प्रतिक हैं हमारे दृढ निश्चय और हमारी अग्रसर सोच का|

मैं देश के वैज्ञानिको और जनता को इस सफलता पर बधाई देता हूँ और आशा करता की हम इसी तरह कदम से कदम मिलते हुए नई ऊचाइयो को पाते रहेंगे और तिरंगे की शान को बनाये रखेंगे |

जय हिंद!

----आमिर खान"तिरंगा"(देश को समर्पित)

Wednesday, November 12, 2008

हम तो सिर्फ़ हिन्दुस्तानी हैं,हमें वोहि रहने दो


पिछले कुछ दिनों से मैं अपनी परीक्षा में व्यस्त था इसलिए अपने विचार प्रकट नही कर पाया...
पर पिछले दिनों देश में हो रही घटनाओ ने मुझे व्याकुल कर दिया और अपनी कलम का मुख खोलने पर मजबूर कर दिया ....इन सभी घटनाओ में जिसने ने मुझे सबसे जयादा परेशान किया वो हैं क्षेत्रवाद की राजनीती!!!

सन 1947 में एक बँटवारे को झेलने के बाद शायद ही कोई देशवासी एक और बँटवारे की चाह रखता होगा...और नए पकिस्तान के बारे सोचता होगा...पर हमारे देश का दुर्भाग्य हैं की हमारे नेताओ में कोई न कोई "जिन्ना" बनने की चेष्टा समय-समय पर करता रहता हैं...और उनका मकसद उस क्षेत्र की जनता का विकास करना नही बल्कि अपनी जेब भरना और सत्ता पर काबिज होना हैं ... ऐसे वक्त में देश की जनता को चाहिए की वो आगे आए और देश की एकता को बनाये रखने के लिए इन सोच के नेताओ को जड़ो से उखड फेके ....

इस हालत पर देश की जनता और इन नेताओ से मेरा यही आह्वान हैं ....

अरे इन नए "जिन्नाओ"की बातों में न आओ,
इन्हे जो कहना हैं,इन्हे कहने दो ।
नही बनना हमें मराठी या बिहारी,
हम तो सिर्फ़ हिन्दुस्तानी हैं,हमें वोहि रहने दो ।।

निज स्वार्थ में अंधे इन लोगो का क्या हैं?
सोचते हैं,जितना खून बहता हैं,बहने दो ।
देश का विकास गया भाड़ में,
जनता का पैसा अपने अकाउंट में सुरक्षित रहने दो॥
अरे जल्लादों,कम से कम अब तो खुश रहो।
हमें तो मत बाटों,हम तो सिर्फ़ हिन्दुस्तानी हैं,हमें वोहि रहने दो।।

ख़ुद आलीशान बंगलो में बैठे रहे ,
क्या फर्क पड़ता है,आम आदमी को जो सहना हैं,उसे सहने दो।
अभी तो कुछ "राहुलो"का खून बहा हैं,अभी तो औरो का भी बहने दो॥

अरे हमें अब तो बख्श दो!!और इस तांडव को रोको ।
हमें मत बांटो ,
हम तो सिर्फ़ हिन्दुस्तानी हैं,हमें वोहि रहने दो।।

अब जरुरत हैं हमें एक साथ इस के ख़िलाफ़ आवाज उठाने की और "इस" प्रकार की घटिया सोच रखने वाले लोगो को यह बताने की पहले हमारा देश हैं और हम हिन्दुस्तानी हैं, बाद में हम पंजाबी,राजस्थानी,मराठी,गुजरती ,बिहारी या अपने अपने राज्यों और क्षेत्रो से हैं..आइये इस मुहीम को आगे बढाइये और देश को विकास के पथ पर ले चलिए...

जय हिंद !
(मुझे पहले अपने हिन्दुस्तानी होने पर गर्व हैं न की राजस्थानी)।


Saturday, October 11, 2008

सच की तलाश में..

किसको देगा सजा तू
कहीकोई काफिर तो हो|
तू तो ख़ुद बंट चुका हैं||
आख़िर अब तेरा सच जाहिर तो हो....

कहा न ढूंढा तुझे मैंने?
इन पथ्थरो के पीछे कोई ईश्वर तो हो|
बहुत सजदे कर लिए तेरे सामने||
आख़िर अब तेरा सच जाहिर तो हो....

इस सच-झूट की उधेड़बुन में
बहुत थक चुका हूँ मैं|
इस अथाह खोज की चाहत में
कही कोई साहिल तो हो ||
आख़िर अब तेरा सच जाहिर तो हो ....

कितना खून बह चुका हैं तेरे नाम पर
तू कातिल हैं या मसीहा ??|
कम-स-कम तेरे अपने तेरे रूप से वाकिफ तो हो
आख़िर अब तेरा सच जाहिर तो हो ....

Wednesday, October 8, 2008

13 दिसम्बर


यह इस कड़ी(मेरी शुरुवाती दिनों मैं लिखी गई कविताओ) की आखिरी कविता हैं ....यह कविता 13 दिसम्बर के दिन भारतीय अस्मिता (भारतीय संसद)पर हुए हमले पर आधारित हैं|इस कविता में एक आदमी के हालत को बयां किया गया जो उस हमले के वक्त वहाँ उपस्थित था ||
पेश हैं मेरी कुछ पंक्तियाँ...

चारो तरफ़ सन्नाटा था,
उठी एक गोली की आवाज़|
मैं भगा और देखा की कौन हैं यह जाबांज,
देखा तो पाया के थे यह आतंकवादी||
चारो तरफ़ फैलाना चाहते थे यह क्रूर बर्बादी|
जब तक मेरी समझ में आता,
और मैं कही भाग पाता||
तभी आया उनमे से एक,
बन्दूक उठाई मुझको देख|
जब वह मुझ पर गोली चलता,
उससे पहले कोई मुझे बचाना चाहता||
नई चल खेल गया विधाता|
उस पर चल गई थी गोली,
लग गई उसके प्राणों की बोली ||
वह हो गया ज़मीन पर ढेर|
क्योकि शेर को मिल गया सवा शेर ||

नेता


पिछली कड़ी को आगे बदते हुए मेरी शुरुवाती दिनों (8वी कक्षा) के दौरान लिखी गई कुछ कवितायें लेकर आपके सामने प्रस्तुत हूँ...यह कविता आज के नेताओ पर आधारित हैं ...इसमे मैंने उनपर कटाक्ष करने की कोशिश की हैं ...प्रस्तुत हैं मेरी छोटी से पेशकश .....

शहीदों की भूमि हैं भारत,
भ्रष्टाचारी नेता हैं आज का नारद |
यह संविधान व जनता के बीच की कड़ी हैं,
जिसके कारण भारतीय जनता आपस में लड़ी हैं||

यह देश की समृद्धि में अवरोधक रूपी दिवार खड़ी हैं ,
इसके कारण भारतीय अर्थव्यवस्था सड़ी हैं|
बड़ी महँ संस्कृति हमारी,
आज लुप्त हो गई सारी||

कुर्सियों के लिए पार्टियों का हो गया फैलावा,
नेताओ को करना पड़ता हैं आज बड़ा दिखावा|
इन नेताओ के कारण फैली यह महामारी,
चुनाओ के समय जनता के सामने बन जाते भिखारी,
फिर पाँच साल तक जनता को भूल जाता यह सेवक भ्रष्टाचारी||

मेरा पहला प्रयास....


आज मैं आपके सामने वो प्रस्तुत कर रहा हूँ जो मेरे लिए अमूल्य हैं...मेरी पहली कविता....
इसी कविता के साथ मैंने पहली बार काव्य लेखन शुरू किया था॥
यह कविता "महात्मा गाँधी जी "पर आधारित हैं |यह कविता मैंने 8 वी कक्षा में "बापू" के जन्मदिवस पर मेरे विद्यालय (स्कूल) के कार्यक्रम के लिए लिखी थी...और उसी के बाद मुझे लिखने का शौक लगा....प्रस्तुत हैं मेरी कविता....

"साबरमती का संत हैं यह गाँधी,
जिसने देश में एकता की डोर हैं बाँधी"

हिन्दुस्तान के लकते जिगर ने कर दिया कमाल|
एक लाठी के बल पर मचा दिया धमाल
और अंग्रेजो के लिए बन गया महाकाल||

यह देश की आज़ादी का कारक हैं,
इसकी लाठी दुश्मनों की आहिंसा रूपी मारक हैं|
यह आहिंसा का पुजारी हैं,
यह नेत्र पर ऐनक धारी हैं||

यह हमारी आज़ादी का नायक हैं,
स्वतंत्रता प्राप्ति में हुई कठिनाइयों का गायक हैं|
इसने देश को दिया आहिंसा का नारा हैं,
यह जगत में भारत को सबसे प्यारा हैं||

Tuesday, October 7, 2008

कोई नहीं ....


दोस्त तो हमारे भी हज़ार हैं लेकिन,
दोस्ती निभाने वाला कोई नहीं |
चाहते तो हम बहुतो को हैं लेकिन,
हमें चाहने वाला कोई नहीं ||

अंधेरे से भरा यह रास्ता कठिन हैं मगर,
रोशनी दिखाने वाला कोई नहीं |
मंजिल तो हमारे सामने हैं ,
लेकिन हमें वहां पहुंचाने वाला कोई नहीं ||

आज कितना तनहा,अकेला हो गया हूँ मैं,
मेरे साथ वक्त बिताने वाला कोई नहीं |
क्या यही जिंदगी की कड़वी सच्चाई हैं ???
यहाँ खुशी के गीत गुनगुनाने वाला कोई नहीं ||

मुश्किलों के समुन्दर में फंसी कश्ती को,
किनारे पहुचाने वाला कोई नहीं |
सेहरा में फंसे किसी प्यासे को,
पानी पिलाने वाला कोई नहीं ||

जिंदगी की इस राह में,
साथ निभाने वाला कोई नहीं |
तनहा हूँ तनहा,
तन्हाई मिटाने वाला कोई नहीं ||
दोस्त तो हमारे भी हज़ार हैं लेकिन,
दोस्त निभाने वाला कोई नहीं....

क्यों नहीं उबलता खून हमारा ??



क्यों खून उबलता नहीं मेरे देश के वासी का
क्यों क्लेवर बदलता नहीं मेरे देश की झाँसी का
क्यों झगड़ बैठा हैं वो त्रिशूल पर या दाढ़ी पर
क्यों राजनीति हो रही हैं "नैनो" जैसे गाड़ी पर
क्यों डर बैठा हैं वो बम जैसे खतरों से
ना उम्मीद हो चुके हैं हम इन सरकारी बहरों से
फिर भी,क्यों खून उबलता नहीं मेरे देश के वासी का ??

क्यों ख़ुद पर हो हमला,तो भड़क उठता हैं वो
पर देश के लिए क्या कारण हैं,इस बेरुखी,इस उदासी का
क्यों खून उबलता नहीं मेरे देश के वासी का

कहाँ गुम हो गया हैं "भगत"इन आदिम अंधेरो में
क्यों इंतज़ार करता हैं वो इस सरकारी फांसी का
क्यों काम करता हैं वो इन नेताओ की दासी सा
क्यों खून उबलता नहीं मेरे देश के वासी का

बस एक प्रश्न पूछता हूँ मैं आपसे
क्यों प्रश्न बदलता नहीं मेरे जैसे प्रयासी का.....
क्यों खून उबलता नहीं मेरे देश के वासी का????

Wednesday, October 1, 2008

ज़िन्दगी

कहीं धुएं में उड़ती ज़िन्दगी
कहीं सड़को पर घटती ज़िन्दगी
हें आदमी ने ख़ुद ही बनाई अपनी यह गत
की जीने को तरसी,ख़ुद ही जिंदगी||

न खुली हवा,न सूरज की किरण
आधुनिकता की आड़ में भटकती जिंदगी
न अमीर को सुख,न गरीब को चैन
खुशी की चाह में दहकती ज़िन्दगी
ज़िन्दगी-हे-ज़िन्दगी,जीने की चाह में भटकती ज़िन्दगी ||

भागती ज़िन्दगी,दौड़ती ज़िन्दगी
धर्मों के नाम पर बटती ज़िन्दगी
क्या करेगा इंसान इस ऊँचाई पर पहुँच कर???
जहाँ जीने को तरसी,ख़ुद ही ज़िन्दगी||

Thursday, September 25, 2008

रोता हूँ आज भी मैं अकेले में

रोता हूँ आज भी मैं अकेले में
भीड़ में भी तनहा हूँ,इस जिंदगी के मेले में

सूरज की रोशनी ढूंढ़ता हूँ आज भी अँधेरी रातों में
उलझ जाता हूँ मैं,अपनी बनाई बातों में

अश्क बहाता हूँ मैं अपनी चाहत की यादों में
और दीया लिए घूमता हूँ मैं तेज़ बरसातों में

क्यों गुम हो जाता हूँ मैं लोगो की आवाजों में
और अपनी आवाज़ छुपा लेता हूँ इन बेसुरे से साजो में

जिंदा हूँ अपने सपने,अपने अरमानो में
आज पूछा जाता हूँ न अपनों में,न बेगानों में

जिंदा लाश बन बैठा हूँ मिट्ठी के तहखानों में
फिर भी न जाता हूँ मैं इन रंगीन मेहखानो में

रोता हूँ जब आज भी मैं अकेले में
कश्ती बन बह जाता हूँ अपने अश्को के रेले में
भीड़ में भी तन्हा हूँ इस जिंदगी के मेले में

कुछ कर दिखाना होगा.....

बुझे चेहरों को मुस्कराना सिखाना होगा
हमें इस बंज़र ज़मीं को गुलशन बनाना होगा
किसी अपने को बेगाना बनाना बहुत आसान हैं साकी
हमें अब दुश्मन को भी गले लगाना होगा

वक्त को रोकना तो मुश्किल हैं
पर ख़ुद को उसके साथ चलना सिखाना होगा
हर मुश्किल से लड़ सके
ख़ुद को इतना सक्षम बनाना होगा
हमें अब दुश्मन को भी गले लगाना होगा

राही को जीवन की मझधार से बचाना होगा
मंजिल पाने के लिए कुछ कर दिखाना होगा
चिडियों को भी बाजों से लडाना होगा
अब दुश्मन को भी गले से लगाना होगा
कुछ कर दिखाना होगा-कुछ कर दिखाना होगा||

अकेला



वक्त कतरा-कतरा कर बह गया
मैं अकेला था,अकेला ही रह गया|
मेरी कमजोरियों को मैं सह गया
और मेरे सपनो का महल,ख़ुद-ब-ख़ुद ढह गया ||

वाकिफ न था मैं इस जालिम दुनिया के रिवाजों से,
अपने ही बनाये सागर में,ख़ुद ही बह गया|
अकेला था,अकेला ही रह गया||

मेरी हर खुशी,मेरा हर अरमान
मेरे ही आंसुओ में बह गया|
और हर निकलता लम्हा मेरे कानो में यह कह गया,
की तू अकेला था,अकेला ही रह गया||

हर वक्त खुशी ढूंढ़ता,और अपनी ही कठिनाइयो से लड़ता|
बस जीने की यही कोशिश हर बार करता रह गया,
और मंजिल को और बढता हर कदम बस यही कह गया

की तू अकेला था,अकेला रह गया
और युही वक्त,कतरा -कतरा कर बह गया||

विजयी मंत्र


अपने हर कदम,हर लक्ष्य पर विचार कर
अपनी जीत,अपनी हार,सब चीज़ को स्वीकार कर

हर कमजोरी पर,विश्वास का प्रहार कर
हर लक्ष्य पर तू जीत की हुंकार भर

चल निकल और सफर इख्तियार कर
और इस डगर पर बढ़ मंजिल को तू पार कर

गौतम,महावीर,मोहम्मद का प्रचार कर
स्वीकार कर,स्वीकार कर,इंसानियत स्वीकार कर

इस राह पर चल अपनी आत्मा का उद्धार कर
और जोश,होश से अपनी जीत का इंतज़ार कर

Wednesday, September 24, 2008

मेरा परिचय



कभी रोता हूँ,कभी हँसता हूँ,
हर इंसान के किसी कोने में,"मैं" बसता हूँ|
उस की हर चाहत को,थोड़ा ही सही,मैं,समझता हूँ ||

कभी दौड़ता हूँ,तो कभी थक कर बैठ जाता हूँ,
अपनी जीत,अपनी हार,सब पर मुस्कराता हूँ|
हारना भी जरुरी हैं,इस बात को भी मैं,समझता हूँ||

जलता हैं परवाना,शंमा के पास जाने पर,
ख़ुद दीवाना हूँ|
इसलिए परवाने की इस चाहत को भी मैं,समझता हूँ||

चाहे आग की तपीश हो,या किसी बेसहारा का गम
लिखता हूँ,इसलिए हर दर्द समझता हूँ|

अगर किसी जंग में अकेला हूँ तो क्या,
मैं हर वक्त इस कलम को,अपनी ताकत,समझता हूँ |

Saturday, September 20, 2008

दंगे-एक अमानवीय त्रासदी

भारत आज़ादी के बाद से कई दंगो का साक्षी रहा हैं |हजारो लोग इस मानवीय त्रासदी का हिस्सा ब चुके हैं|
मज़हब के नाम पर खेले जाने वाले इस खूनी खेल का हिस्सा कोई विशेष मजहब को मानने वाला इंसान नही,एक आम इंसान हैं ..क्योंकि मारने पर उतारू भीड़ सामने आने वाले का मजहब नही पूछती हैं|उस का शिकार कोई भी बन जाता हैं|२००२ में गुजरात में हुआ "गोधरा कांड" और अमरनाथ में ज़मीन के विवाद के बाद उत्पन्न हुए हालात इसके ज्वलंत उदाहरण है |अगर हम इन दंगो के हालातो को ध्यान से देखे तो पाएंगे की यह सब कुछ "तुच्छ" किस्म के लोगो द्वारा स्वय के फायेदे के लिए उठाये गए ग़लत कदमो का नतीजा है|दंगो की वजह से न केवल जान-माल का नुक्सान होता है बल्कि दुनिया में सांप्रदायिक एकता की मिसाल हमारे "भारतवर्ष "की प्रतिष्ठा को भी भीषण आघात पहुँचता है| दंगो की भयावह तस्वीर मैंने चंद पंक्तियों के जरिये आपके सामने रखने की कोशिश की है ....


दंगो की आग,जलते हुए घर
आतंकी तलवार,मानवता का सर
रोते लोग,बेजान,बेघर
जेहाद का मुखौटा,मारने को तत्पर
खून की होली,मरने का डर
आम आदमी,बैठा छुपकर
बिलखते बच्चे,खूनी अम्बर
बमों की चीखे,सुनी देशभर
कब उठेगा,इंसान,इन सब से ऊपर??

जैसा की पहले भी अपने लेख में ज़िक्र किया है की इन हालातो से ऊपर हम तभी आ सकते है जब सारा देश एक साथ एकजुट होकर इनका सामना करे और चंद मजहबपरस्त लोगो के बहकावे में न आए|दूसरी ओर गरीबी और अशिक्षा भी ऐसे हालातो को जन्म देने का कारण है इसलिए हमें चाहिए की हम घरेलु व्यवसायों को बढावा दें ओर अपने आस पास के गरीब बच्चो को शिक्षा की ओर खिचे...ओर सक्षम और शिक्षितलोग समाज के सुधार के लिए आगे आए और इसे अपना कर्तव्य समझे|

आईये देश के विकास में योगदान दीजिये ओर धर्मनिरपेक्ष भारत की प्रतिष्ठा को बनाये रखिये |
जय
हिंद

ए.बी.यू रोबोकोन 2008 ---तकनीक से रूबरू

भारत
ज्ञान का सिरमौर और अपने अतिथिसत्कार के लिए प्रसिद देश----और इन विशेषताओ का जीवांतउदहारण बना तकनीकी दक्षता का खेल -.बी.यू रोबोकोन


.बी.यू रोबोकोन--एशिया-प्रशांत महाद्वीप के प्रसारण समूहों द्वारा साझा रूप से किया गया प्रयास...
सन२००२ में प्रारं किया गया यह आयोजन आज एक सफल और वैश्विक रूप ले चुका हैं..और तकनीकी दुनिया में अपना एक अलग स्थान बना चुका हैं|इस विशाल तकनीकी मेले का सफल आयोजन करना भी एक चुनौती का काम हैं और इस वर्ष इस तकनीकी महाकुम्भ का आयोजन करने का मौका मिला हमारे देश भारत को|'दूरदर्शन' भारत की तरफ़ से प्रसारण समूह का हिस्सा हैं|इसलिए इस मेले का आयोजन दूरदर्शन और एम्.आइ.टी पुणे समूह द्वारा साझा रूप से किया गया|इस खेल की परम्परा अनुसार हर वर्ष इस मेले का आयोजन करने वाला देश ही इसमे होने वाले खेल का विषय चुनता हैं..और क्योंकि भारत में इसका आयोजन हो रहा था इसलिए इसका विषय चुना गया..भारत में मनाया जाने वाले एक विशेष त्योहार ..."जन्माष्टमी" ..इस त्यौहार में एक सांकेतिक खेल का आयोजन किया जाता हैं जो की "दही-हांडी" के नाम से प्रसिद्द है|इस खेल में गोविन्दाओं को मानव सूचीस्तंभ का निर्माण कर ऊचाई पर लगी हंडी को फोड़ना होता हैं पर इस बार यह काम करना था मानव निर्मित मशीनों को... और मशीनों द्वारा किए जाने वाला कृत्य अपने आप में एक अजूबा था | एम्.आइ.टी का छात्र होने के नाते मुझे मौका मिला इस महामेले को प्रत्यक्ष रूप से देख पाने का...
पूरे महाद्वीप से आई विभिन् देशो की तकनीकी दक्षता को देख पाना और मशीनों को आदमी के द्वारा किए जाने वाले कृत्य करतेदेखना मेरे जैसे किसी भी इंजिनियर के लिए सौभाग्य की बात होगी...इस तरीके के आयोजनों से केवल एक दुसरे की तकनीकी दक्षता को समझने का मौका मिलता हैं बल्कि हमें एक दुसरे की संस्कृतियो और परम्पराओ को जानने का भी मौका मिलता हैं
अब वापस से तकनीकी दक्षता की बात करते हैं..इस बार हमें चीन,हांगकांग,कोरिया,इंडोनेशिया,मिश्र..और इन जैसे कई छोटे बड़े देशो के द्वारा बनाये गए दक्ष यन्त्रमानवों को देखने और उनमे उपयोग में लायी गई तकनीक को पास से देखने का मौका मिला..और उन्हें देख कर लगा की इतने छोटे देश भी भारत जैसे विशालकाए देश से तकनीकी रूप से कई गुना बेहतर हैं...हालाँकि ऐसा नही हैं की भारत तकनीकी रूप से असक्षम या कमज़ोर हैं लेकिन फिर भी हमें अभी कई दिशाओ में अपना विकास करना हैं और अपने आप को दुनिया के समकक्ष लेकर आना हैं |
इस तरीके के आयोजन देश के तकनीकी विकास और शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकते हैं|इस प्रकार के आयोजन के लिए हमें दूरदर्शन और एम्.आइ.टी, पुणे समूह का आभारी होना चाहिए जिन्होंने अपने दृढ निश्चय के बल पे इस महाकुम्भ को सफलता पूर्वक आयोजन किया और देश के इंजीनियरिंग छात्रों और संस्थानों के लिए नए द्वार खोले...

अंत में यही कहना चाहूँगा की हमें कोशिश जारी रखनी होगी और अपने आप को तकनीकी दुनिया की नई ऊचाइयों तक पहुचाना होगा.......और यही कहूँगा

"जो सफर इख्तियार करते हैं,
वो ही मंजिल को पार करते हैं|
बस एक बार चलने का हौसला तो रखिये,
ऐसे मुसाफिरों का तो रास्ते भी इंतज़ार करते हैं||"

जय हिंद.

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