Friday, December 18, 2009

A short story

“Started with year’s longest day, Fear of getting rejected, Assaulted, betrayed by a closed one,

little Confused, Angry, Lot of emotions & tears, mental breakdown, got one of the best projects,

University Results, Swine flu break, CAT dilemma, AES president, magazine launch, IAS

Preparation, Coach’s health, diwali break, upset, missing home, Project Oral, best buddies

placed in Persistent, met her after a long time, Happy, Theory exams, Missed CAT exam,

Magazine got first Prize, placement Session, nervous, Coordinator, 12 December placement

starts, gets in touch with lot Of new friends, 17 December Infosys, Accenture, Cognizant & TCS

calling.Finally going with Accenture, Mixed Reactions.21 December, year’s smallest day, with

lots of Up’s & Down’s in my life.

Finally, I am going back to Pavilion after Exact six months”.

Thursday, December 17, 2009

Placed!!!!

Infosys,Accenture,Cognizant & TCS...all want me to join them....but finally i choose Accenture over others.......[:)]

Sunday, October 4, 2009

Pearl!!


droplets on a leaf.....

Creativity!!!


Alphabets "S K" by using sticky Notes....

Keep Walking...


If the path is beautiful,Ask where it leads to..




But If the destination is beautiful,don't Ask how the path is.....



Special Moment!!!!


With Our Director Karad Sir,Dean Darade Patil Sir,Principal Kshirsagar Sir nd HOD Mulay Sir....

Its Me!!!! ~A.S.K~


Team "sourabh" wid Vijendar Singh



when the heart feels a deep cut,the pen refuses to move.......

Saturday, August 1, 2009

HAPPY FRIENDSHIP DAY!!!!


कुछ शब्दों में मैंने इस रिश्ते को लिखा हैं,हालाँकि यह हम लोगो के रिश्ते के सामने कुछ भी नही .....क्युकि रिश्ते
कागज़ पे नही उतारे जा सकते|


हम साथ वक्त बिताते हैं,
हँसते,खेलते,लड़ते जाते हैं|
हम वोही हैं जो क्लास में कागज़ के फर्रे हो
या रात में maggi या कॉफी,
सब कुछ साथ बनाते हैं|
कभी रूठो को मनाते हैं
या कभी हंसतो को रुलाते हैं
पर गम
हो या खुशी,
हम,हर पल साथ निबाते हैं|
कोई खुदाई रिश्ता हो या नही
हम उससे बड़कर रिश्ता निभाते हैं|
यह जो लोग हैं,
वो ही जिंदगी बन जाते हैं|
या यूँ कहूँ,
मेरे दोस्त ही मेरी,जिंदगी कहलाते हैं||


this is dedicated to all my friends...who make my life beautiful.......
Thnx for being wid me... stay forever..
Happy Friendship Day..

Friday, July 31, 2009

काश!

काश!हम उनसे मिले न होते,

तो यह दुःख ,यह दर्द,हमने सहे न होते

खुश रहते हम अपनी ही दुनिया में,

पर शायद तब हम ख़ुद,ख़ुद रहे न होते

वो शख्स ही मुझे झूठा बता गया,

नही तो कभी हमने यह लफ्ज़,कहे न होते

की काश! हम उनसे मिले न होते



Thursday, July 30, 2009

धड़कन

नब्ज टटोली,तो पाया,

कुछ देर से,वो थमी सी हैं,

शायद,मुझे कुछ,हो सा गया हैं |

उनको देखा,तो याद आया की,

शायद,दिल ही कही,खो सा गया हैं ||

Wednesday, July 29, 2009

फ़िदा

उसकी एक नज़र पर मैं, फ़िदा हो गया,

उसका पलके झुकाना भी ,अब अदा हो गया|

वो रूठी क्या मुझसे,पल दो पल के लिए,

मैं ख़ुद अपने दिल से,जुदा हो गया ||

मैं और मेरी बेबसी !!!

कुछ सपनो को बनते-बिगड़ते देखा हैं मैंने,

उसको,अपने अक्स से,उस शख्स से,डरते देखा हैं मैंने

मेरी कमजोरी हैं की,मैं कुछ न कर सका,

बस हताश नजरो से ,वक्त को बदलते, देखा हैं मैंने

Sunday, July 26, 2009

धर्म-पार्ट 1

आज जो बात मैं यहाँ करने जा रहा हूँ वो शायद मेरे ओर आपके अस्तित्व को ही हिला कर रख दे.....
कुछ दिनों से मेरे मन में एक बात चल रही थी, एक दिन मैं मेरे दोस्तों के साथ बैठा था तो हम लोग आपस मैं बात कर रहे थे,मेरा एक बंगलादेशी दोस्त बोल रहा था की उनके यहाँ पर हिन्दुओ को बहुत परेशानी का सामना करना पड़ता हैं|बांग्लादेश एक मुस्लिम देश हैं तो उन लोगो के साथ अच्छा बर्ताव नही किया जाता हैं|तो वो बता रहा था की मुस्लिम लोग अच्छे नही हैं,मैं भी वही था,हालाँकि मेरी सहमति के बाद ही उसने यह सब बोलना शुरू किया.....

पर उस दिन के बाद से जो चीज़ मेरे दिमाग मे चल रही थी वो ओर तेज़ी के साथ चलने लगी....वो बात थी "धर्म" के बारे में|मैं यह सोच रहा था की जिस इस्लाम को में मानता हूँ,ओर मैं ख़ुद एक मुस्लमान हूँ(सिर्फ़ इसलिए क्यों की मुस्लिम परिवार में पैदा हुआ हूँ,मैं आगे अपने धर्म के बारे में लिखूंगा ) उस हिसाब से जिस धर्म को में मानता हूँ वो तो किसी ओर तंग करने का या लोगो का बुरा करने का नही कहता...तो फिर मेरा दोस्त जिन लोगो के बारे में बात कर रहा हैं वो कौनसे धर्म के हैं? वो सही वाले मुस्लिम हैं या मैं सही धर्म को जानता हूँ?या हम दोनों ही उस धर्म के नही हैं ??
यह कुछ बातें मेरे जेहन में उठने लगी जिन्होंने मुझे हिला कर रख दिया|मुझे यह सोचने पर मजबूर कर दिया की "धर्म" क्या हैं?और कौन सही हैं में या वो??
इन सवालो के जवाब में मुझे जो मिला वो बहुत ही खतरनाक था ,और जिसका जवाब शायद हमारे वजूद को हिला के रख दे.......

मैंने जब इस बात पर सोचना शुरू किया तो उसका यह परिणाम निकल के आया............




"फिलहाल मेरा कोई मजहब(धर्म) नही हैं,मेरा नाम इस्लाम के साथ जुडा हैं क्योंकी यह नाम मुझे मेरे परिवार से मिला हैं,या यूँ कहूँ इश्वर को पाने का यह रास्ता मेरे घर वालो ने चुना,और उनके हिसाब से येही सब से अच्छा और सही रास्ता हैं,इसलिए उन्होंने मुझे भी इसी रस्ते पर चलना सिखाया"


इस बात से यह तो साफ़ हो गया की "धर्म" सिर्फ़ रस्ते हैं ईश्वर तक पहुचने का|और अभी मैं उसी हालत में हूँ जिस हालत में जब पैदा हुआ था तब था सिर्फ़ इतना अन्तर हैं की मेरे साथ मेरे रस्ते का नाम जोड़ दिया गया हैं,जिस पर मैं कभी चला या चलना चाहूँ यह नही पता|

पर एक बात जो मेरे को बार बार विचलित कर रही हैं वो हैं की मैं मुस्लमान हुआ कहा?उदहारण के लिए मैं इंजीनियरिंग का स्टुडेंट हूँ,पर अभी न तो मेरे पास डिग्री हैं न कोई एक्सपेरिएंस,तो क्या मैं इंजिनियर हूँ??अगर मैं किसी इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला ही न लूँ या मैं इंजीनियरिंग की पढ़ाई ही न करूँ तो क्या मैं इंजिनियर बन पाऊंगा??....इसका जवाब न ही हैं,उसी तरह जिस "धर्म" को अभी मैंने 5% भी नही जाना उसके साथ मेरा नाम जोड़ दिया गया और यह मान लिया गया की मैं उस धर्म का हूँ क्या यह सही हैं???
क्यों मुझे पहले धर्म के बारे में जान लेने नही दिया गया??
जब मैं पैदा हुआ था तब तो मेरे नाम के आगे इंजिनियर नही लिखा गया था तो यह धर्म क्यों जोड़ दिया गया?
क्या यह सही हैं की जिस रास्ते पर मेरे पूर्वज चले हैं उससे रास्ते पर मैं भी चलूँगा तो मुझे ईश्वर मिल ही जाएगा.......हाँ यह जरुर हैं की इस रास्ते को उन्होंने जाना हैं इसलिए उन्होंने मुझे इस पर चलने की सलाह दी गई
पर यहाँ कही ऐसा नही लगता की यह मुझ पर थोपा गया हैं???

यहाँ मैं मेरे साथ हुई किसी बात को नही लिख रहा हूँ....यह सब तो वो सवाल हैं जो हर इंसान को अपने आप से पूछने होंगे...मैं और मेरा परिवार सिर्फ़ इसका हिस्सा हैं|यह तो सबसे बेसिक प्रश्न हैं....क्या आपने कभी अपनी जिंदगी का थोड़ा सा भी वक्त इस बात के लिए निकला हैं???

क्या आपको लगता हैं वो लोग जो "धर्म" के नाम पर ग़लत काम करते हैं वो उस धर्म के हैं ...दुनिया का शायद ही कोई धर्म आतंक फैलाने को कहता होगा|तो फिर वो लोग जिनके बारे में मेरा दोस्त कह रहा था क्या वो भी मेरी तरह के मुस्लमान हैं जिनका नाम तो यह कहता हैं की वो मुस्लिम हैं पर वो उस धर्म के नही हैं|तो आप ही बताइए की अगर कोई आदमी जो नाम से मुस्लमान हो और उसको उस धर्म का कुछ भी ज्ञान न हो तो उसका उस धर्म से क्या वास्ता??

मतलब इंसान ग़लत हो सकता हैं धर्म नही.......
तो फिर क्यों हर आदमी को पैदा होते ही एक धर्म का तमगा पहना दिया जाता हैं,जिस पर वो बाद में चले या नही
पर उसे उस धर्म के नाम का ग़लत फायदा उठाने का मौका मिल जाता हैं ???
क्या यह आतंकवाद और यह सब इसलिए ही तो नही हो रहा क्युकि हम कही कमझोर पड़ रहे हैं.....कोई बहुत छोटी सी चीज़ जो हमारे मूल से जुड़ी हुई हैं और जिसपे हम बात करने से डरते हैं या करना ही नही चाहते ??यही उसका कारण हैं ??

Thursday, July 23, 2009

चाहत


वक्त-बेवक्त याद आया न करो,
ख़ुद याद न करो,तो सताया न करो |
मेरी बेचैनियों का अगर तुझे अहसास नही ,
तो मेरी रातों की नींदे चुराया न करो||

तुझे नही है अगर मेरी चाहत पर भरोसा,
तो नजरो से तीर चलाया न करो|
मुझे रहने दो खुश!!मेरे ख्वाबो के महलो मे,
इन्हे ताश के पत्तो की तरह गिराया न करो||

जब देना ही हैं मेरे दिल को जख्म,
तो जाते जाते मुस्कुराया न करो|
अगर न कहना हैं तो एक बार में कह दो,
इस पागल के इश्क को बढाया न करो||

वक्त-बेवक्त याद आया करो...

अगर प्यार नही मुझसे,तो न सही|
पर बार-बार सामने आकर,धड़कने बढाया न करो|
जब तोड़ना ही हैं तुझे इस दिल को,
तो इस मासूम को जीना सिखाया न करो||

जाओ कही दूर जाओ मुझसे|
जब ख़ुद याद करो,तो सताया करो |
मुझे वक्त-बेवक्त याद आया करो.....

Monday, July 20, 2009

बेबसी!!


जितना दूर जाता हूँ तुझसे,
उतना और करीब आ जाता हूँ मैं|
बेचैनिया चाहे कितनी हो,
हर वक्त मुस्कुराता हूँ मैं||

बहुत बेबस हूँ मैं!!

ना प्यार दिखा सकता हूँ,
ना अपना गम बता सकता हूँ मैं |
जब भी होती हैं तू मेरे सामने,
सिर्फ़ आँखे झुका सकता हूँ मैं||
बहुत बेबस हूँ मैं!!

तुझे भुलाना तो सम्भव नही ,
सिर्फ़ फासले बड़ा सकता हूँ मैं|
मेरे पास तुझे देने को कुछ नही,
बस,तेरे लिए,अपनी हस्ती मिटा सकता हूँ मैं||

बहुत बेबस हूँ मैं!!

मेरी बेबसी का आलम तो देखो,
यहाँ लिख के जज्बात दुनिया को दिखा सकता हूँ मैं|
पर जब भी तुम मेरे साथ होती हो,
बेजुबान होकर,सिर्फ़ खामोशियाँ बड़ा सकता हूँ मैं ||

बहुत बेबस हूँ मैं!!

Thursday, July 16, 2009

ज़ज्बात



दिल को तड़पता देख
आँखे बोली
क्या मैं रो दूँ??
दिल बोला
मैं ख़ुद तो डूबा हूँ,
तुझे भी,क्यों डूबो दूँ??
आँखे बोली
तेरा गम कम करने के लिए
कम से कम,
पलके तो भींगो दूँ??
दिल बोला
पहले ही बहुत कुछ खो चुका हूँ|
क्यों अब उसकी खातिर|
तेरे इन अनमोल मोतियों को भी,
मैं खो दूँ ??

Sunday, June 14, 2009

या खुदा!काश तू इन मन्दिर,मस्जिद,दरगाहों मे होता

या खुदा!अगर तू इन मन्दिर,मस्जिद,दरगाहों मे होता
तो बैठा करते इनके द्वारे
और अपना शुमार भी आकाओ मे होता|
जिस मौत के डर से बचकर जीते है जिंदगी
तब वोह डर भी अपनी पनाहों मे होता||
या खुदा!काश तू इन मन्दिर,मस्जिद,दरगाहों मे होता

चलते अपनी मंजिल की ओर
और तेरा हर फ़ैसला मेरी राहों मे होता|
इन रहबरों मे इतनी ताकत होती
तो मेरा हर सपना,मेरी बाँहों मे होता||
या खुदा!काश तू इन मन्दिर,मस्जिद,दरगाहों मे होता

करता मैं हजारो गुनाह
और मेरा फ़ैसला बेगुनाहों मे होता|
तेरा बस चलाता,और मेरा चर्चा हर दिशाओं मे होता||
या खुदा!काश तू इन मन्दिर,मस्जिद,दरगाहों मे होता

Friday, May 15, 2009

प्यार की तलाश में

वक़्त बीता,मन जीता
खूब विचरा,प्रेम के आकाश में

दिल गिरा,फिर संभला
फिर मुसाफिर चल पड़ा हैं
प्यार की तलाश में

पतझड़ आए,मौसम बदले
वृक्षों ने अपने पत्ते बदले
फिर सुहानी ऋतू आई
तृप्त सूरज ने जोत जलाई
नए जीवन के विकास में
फिर से पंछी उड़ चला हैं
नए गगन की आस में

फिर मुसाफिर चल पड़ा हैं
प्यार की तलाश में

समय ने अपना चक्र बदला
आतंक मचा,विनाश हुआ
धुआं उठा,अंधकार बड़ा
इधर भागे,उधर भागे
जुगनू पकड़े,प्रकाश के आभास में



प्रेम के सूरज की किरने,
फिर उठने लगी आकाश में
क्रुन्दन की आवाजों को बदला
सुरों में और साज में
फिर मुसाफिर चल पड़ा है
प्यार की तलाश में

A man is but the product of his thoughts what he thinks, he becomes.


What a difference a sad event in someone's life makes.
GEORGE CARLIN (when His wife died...)

Isn't it amazing that George Carlin - comedian of the 70's and 80's - could write something so very eloquent...and so very appropriate?

A Message by George Carlin:

The paradox of our time in history is that we have taller buildings but shorter tempers, wider Freeways , but narrower viewpoints. We spend more, but have less, we buy more, but enjoy less. We have bigger houses and smaller families, more conveniences, but less time. We have more degrees but less sense, more knowledge, but less judgment, more experts, yet more problems, more medicine, but less wellness.

We drink too much, smoke too much, spend too recklessly, laugh too little, drive too fast, get too angry, stay up too late, get up too tired, read too little, watch TV too much, and pray too seldom.

We have multiplied our possessions, but reduced our values. We talk too much, love too seldom, and hate too often.

We've learned how to make a living, but not a life. We've added years to life not life to years. We've been all the way to the moon and back, but have trouble crossing the street to meet a new neighbor. We conquered outer space but not inner space. We've done larger things, but not better things.

We've cleaned up the air, but polluted the soul. We've conquered the atom, but not our prejudice. We write more, but learn less. We plan more, but accomplish less. We've learned to rush, but not to wait. We build more computers to hold more information, to produce more copies than ever, but we communicate less and less.

These are the times of fast foods and slow digestion, big men and small character, steep profits and shallow relationships.. These are the days of fancier houses, but broken homes. These are days of quick trips, disposable diapers, throwaway morality, one night stands, overweight bodies, and pills that do everything from cheer, to quiet, to kill. It is a time when there is much in the showroom window and nothing in the stockroom. A time when technology can bring this letter to you, and a time when you can choose either to share this insight, or to just hit delete...

Remember; spend some time with your loved ones, because they are not going to be around forever.

Remember, say a kind word to someone who looks up to you in awe, because that little person soon will grow up and leave your side.

Remember, to give a warm hug to the one next to you, because that is the only treasure you can give with your heart and it doesn't cost a cent.

Remember, to say, "I love you" to your partner and your loved ones, but most of all mean it. A kiss and an embrace will mend hurt when it comes from deep inside of you.

Remember to hold hands and cherish the moment for someday that person will not be there again.

Give time to love, give time to speak! And give time to share the precious thoughts in your mind.

AND ALWAYS REMEMBER:

Life is not measured by the number of breaths we take, but by the moments that take our breath away.

George Carlin

Tuesday, March 31, 2009

कलम


कलम चले तो वक्त का सीना फाड़ दे,
कलम रुके तो इतिहास का पहाड़ दे|
कलम में इतना पैनापन हैं,
की जब लड़े,सताओ को उखाड़ दे ||

कलम!सच का हमेशा साथ दे,
कलम!खुशियों की फुहार दे|
कलम !कमजोर को अपनी ढाल दे,
कलम!अकेलेपन से पार दे|
जब भी चले मेरी कलम!
मुसीबत को हुँकार दे||

कलम !जज्बात कागज़ पर उतार दे,
कलम !खूबसूरती को निखार दे|
कलम !हकीकत को उभार दे,
कलम !देश को अभिमान दे||

मेरे लिए बस यही दुआ करो,
जब भी चले मेरी कलम,
सच्चाई का प्रमाण दे||

Saturday, March 28, 2009

दिख भी जाते हैं तो कतरा के निकल जाते हैं

दिख भी जाते हैं तो कतरा के निकल जाते हैं,
वक्त के साथ तो रिश्ते भी बदल जाते हैं|
जो कभी हमारे बिना अधूरे थे,
आज हमसे कोसो दूर नज़र आते हैं||

शायद इंसान की फितरत में है यह,
गिरगिट की तरह रंग बदलते जाते हैं|
जिसके लिए जिया करते थे वोह,
आज आपस में दुश्मन कहलाते हैं||

हम तो समझते थे की पत्थर भी पिघल जाते हैं,
पर यहाँ तो ख़ुद अपने ही ठोकर लगाते हैं|
हम तो उनकी मोहब्बत में गिरफ्तार हैं यारो,
ठोकरे खा के भी नासमझ ही कहलाते हैं||

जिन पर भरोसा किया करते थे,
वक्त आने पर वोही लोग बदल जाते हैं|
अब तो दिख भी जाते हैं तो कतरा के निकल जाते हैं,
छोड़ो यारो!!क्यो हम उनके लिए आँसू बहाते हैं [;) ]||

Thursday, March 26, 2009

ख़ुद को जीना सिखलाऊ तो कैसे?


अजीब कशमकश में फँसा हूँ,
ख़ुद को जीना सिखलाऊ तो कैसे?
मैं बेचैन हूँ ,खामोश हूँ
आँखों को रोना सिखलाऊँ तो कैसे?
उनको देखूँ तो दिल मचल उठता हैं
अपने जज्बातों को सीने में छुपाऊँ तो कैसे??

मैं कौन हूँ,क्या हूँ,यह नही जानता
पर इस बात को आईने से छुपाऊँ तो कैसे??
जो सच हैं वोह बदलता नही हैं
ख़ुद की हकीक़त झूठ्लाऊँ तो कैसे?
मेरे दिल में तो तुम ही बसी हो
आखों से परदा हटाऊँ तो कैसे??
अजीब कशमकश में फँसा हूँ
ख़ुद को जीना सिखलाऊँ तो कैसे???

मेरे हर पल में सिर्फ़ तुम हो
पर चाँद को चकोर से मिलाऊँ तो कैसे??
आखों के इशारे तो समझती नही हो
शब्दों के भ्रमजाल में फंसाऊं तो कैसे??
मैं तुम्हारा हूँ,सिर्फ़ तुम्हारा
इस दिल को खोल के दिखलाऊँ तो कैसे??

तू ख़ुद ही बता दे मुझे ऐ जालिम
इस नाजुक से मन को समझाऊँ तो कैसे??
इतना उलझा हूँ मैं,की न समझूँ
कैसा हूँ ,कैसे को
इन बेचैन से सवालों से हटाऊँ तो कैसे ??
अजीब कशमकश में फंसा हूँ,
ख़ुद को जीना सिखलाऊ तो कैसे??

Wednesday, March 25, 2009

हे खुदा!इंसान बना दे















हे
खुदा!इंसान बना दे
न चाहूँ मैं ग़ालिब का तमगा,
न तू शान अपार दिला दे|
जब भी मांगू,बस एक दुआ दे
हे खुदा! इंसान बना दे ......

सरहदों का भेद मिटा दे ,
अमन-चैन का वरदान दिला दे |
धर्मो का बंधन हटा दे,
अंधेरे को दूर भगा दे||
जब भी मांगू,बस एक दुआ दे
हे खुदा! इंसान बना दे ...

सच्चाई का परचम फेहरा दे
बुराई का तू नाश करा दे
जब भी कोई मांगे, तो बस एक दुआ दे
हे खुदा!इंसान बना दे ...

आतंक का तू अंत करा दे,
खुशियों की चादर उडा दे|
दोस्ती का खेल सिखला दे,
हर मैं तेरा अक्स दिखला दे||
जब भी कोई मांगे,तो बस एक दुआ दे
हे खुदा!इंसान बना दे.....

नादान हूँ, तुझसे ही प्यार करता हूँ||


मैं ही हमेशा इजहार करता हूँ,
क्यों तेरे जवाब का इंतज़ार करता हूँ|

यही खता मैं बार बार करता हूँ,
चाहते हुए भी तुझसे ही प्यार करता हूँ||

शायद नादान हूँ तेरी फितरत से जालिम,
क्यों तेरी सोच में वक्त बेकार करता हूँ|

काटता हैं मुझे अकेलापन,
इसलिए अपने आप से तकरार करता हूँ|
न चाहते हुए भी,तुझसे ही प्यार करता हूँ||

तेरी खामोशी मुझे डराती हैं,
तुझे खोने के डर से नही मैं इनकार करता हूँ|

आख़िर इंसान हूँ मैं,कब तक इंतज़ार करूँ तेरा,
फिर भी मैं इज़हार-ए-इश्क आखरी बार करता हूँ|
नादान हूँ, तुझसे ही प्यार करता हूँ||

अगर "न" हैं तेरी तो, खत्म यह करार करता हूँ|
और फिर से तेरी "हाँ" का इंतज़ार करता हूँ||

मजहब नही सिखाता आपस में बैर रखना | पर मजहब में बंट चुका है हिन्दुस्तान हमारा||


बचपन में खूब सुना था,
मजहब नही सिखाता आपस में बैर रखना |
पर मजहब में बंट चुका है हिन्दुस्तान हमारा||

इस आंधी से कौन बचा हैं?
हर एक कट चुका हैं,वतन का दुलारा|
मजहब में बंट चुका हैं हिन्दुस्ता हमारा||

अब करने को क्या बचा हैं?
न खुशियों में बचा हैं आपस में भाईचारा,
निज स्वार्थ की लडाई को बताया मजहब का इशारा|
और शान से घुमा,यहाँ मानवता का हत्यारा,
मजहब में बंट चुका हैं हिन्दुस्ता हमारा||

मन्दिर-मस्जिद के लडाई ही बना जीने का ध्येय हमारा,
खुश होंगे जब बहेगा,किसी कौम का खून सारा|
ना जाने कितने भागो में बटेगा यह गुलिस्ता हमारा,

मजहब में बंट चुका हैं हिन्दुस्ता हमारा||

Friday, March 13, 2009

मेरे अन्दर की होलिका तो जलती ही नहीं हैं...

आप सभी को होली मुबारक हो !!




















मेरे
अन्दर की होलिका तो जलती ही नहीं हैं
रंग तो चढ़ते हैं अनेक पर,यह काली सी सीरत बदलती नहीं हैं।
राग द्वेष की इस वेदी पर,प्रेम की सूरत सँवरती नहीं हैं
जलाता तो हूँ हज़ार होलिकाए,पर मेरे अन्दर की होलिका तो जलती ही नहीं हैं॥

प्यार के रंग में भरता हूँ पिचकारी तो,
मजहब की चोटी पर चढ़ती नहीं हैं।
अरे!कैसी पिचकारी हैं यह,मानव को मानव समझती नहीं हैं
मेरे अन्दर की होलिका तो जलती नहीं हैं॥

इन खूबसूरत रंगों का मतलब तो समझो
यह रंगीनिया बेमानी हैं,अगर जीवन में खुशियों को भरती नहीं हैं।
इन हजारो होलिकाओ को जलाने का क्या फायदा??
जब अन्दर की होलिका तो जलती नहीं हैं॥

LinkWithin

Related Posts with Thumbnails