आज आखिर वो बात हो ही गई,
नज़रों ही नज़रों में मुलाकात हो ही गई|
कुछ वो शरमाए,कुछ हम घबराए|
"मैं","आप"में दो बात हो ही गई||
सपने महके,बादल गरजे|
और न जाने कैसे बरसात हो ही गई||
बातों-बातों में जाने कब रात हो गई|
और यूँ उस नए रिश्तों की शुरुआत हो ही गई||
अपने-अपने रास्तें जाने का वक़्त आया,
तो दिल की बैचेनी से मुलाकात हो ही गई|
नज़रें मिली,मुस्कान छुटी तो,
बस कल फिर मिलने की बात हो ही गई .... ||
Tuesday, February 9, 2010
Monday, February 8, 2010
इज़हार
वक़्त किसी के आने का इंतज़ार नहीं करता
सूरज कभी रात का दीदार नहीं करता|
होंसला हो तो आगे बढ़ निकलो !!!
क्यूंकि, रोता हैं वो जो इज़हार नहीं करता||
कमजोर हो जिगर तो, इतिहास नहीं गढ़ता|
झूठी हो बुनियाद तो ,विश्वास नहीं बढता ||
डूबते सूरज को तो, कोई भी,नमस्कार नहीं करता|
जज्बा हो तो कर डालो!!!
क्यूंकि, वक़्त किसी के आने का इंतज़ार नहीं करता||
बेकार लकड़ियों से नाविक,नौका तैयार नहीं करता|
वीर तो वो हैं, जो पीछे से वार नहीं करता||
आशिक होता तो,मुमताज की मौत का इंतज़ार नही करता|
चाह हैं तो कह डालो !!!
क्यूंकि,फिर कोई न कह सके की मैं उससे "प्यार" नहीं करता||
वक़्त किसी के आने का इंतज़ार नहीं करता, इंतज़ार नहीं करता
सूरज कभी रात का दीदार नहीं करता|
होंसला हो तो आगे बढ़ निकलो !!!
क्यूंकि, रोता हैं वो जो इज़हार नहीं करता||
कमजोर हो जिगर तो, इतिहास नहीं गढ़ता|
झूठी हो बुनियाद तो ,विश्वास नहीं बढता ||
डूबते सूरज को तो, कोई भी,नमस्कार नहीं करता|
जज्बा हो तो कर डालो!!!
क्यूंकि, वक़्त किसी के आने का इंतज़ार नहीं करता||
बेकार लकड़ियों से नाविक,नौका तैयार नहीं करता|
वीर तो वो हैं, जो पीछे से वार नहीं करता||
आशिक होता तो,मुमताज की मौत का इंतज़ार नही करता|
चाह हैं तो कह डालो !!!
क्यूंकि,फिर कोई न कह सके की मैं उससे "प्यार" नहीं करता||
वक़्त किसी के आने का इंतज़ार नहीं करता, इंतज़ार नहीं करता
Sunday, February 7, 2010
मंथन
कभी कभी इन खामोश नजरो से अपनी कमजोरियों की और देखता हूँ
तो एहसास होता हैं की यह ही तो मेरी अपनी ही हैं क्यूकि इन्हें मैंने
ही तो इतना आगे बढने दिया हैं , मैंने अगर कभी पहले इन पर ध्यान
दे दिया होता तो शायद आज यह वो न होती जो यह आज हैं
फिर क्यों मैं इन को देख कर दुखी होता हूँ ? क्या कोई माँ -बाप अपने बच्चों से
नाराज़ होते हैं ??? नहीं !!! तो फिर क्यों मैं इनसे मुहँ छुपता फिरता हूँ
क्यों मैं अपने सच को मान कर इन्हें सही नहीं करता हूँ
क्यों आज भी मैं किसी और का इंतज़ार करता हूँ अपने आप को बदलने के लिए
क्यों आज भी मैं अकेले मैं आईने के सामने अपने प्रतिबिम्ब को देख कर आंसू बहाता हूँ
यह जो मेरी दुनिया हैं यह मेरी ही बनाही हुई हैं
तो क्यों मैं इसको नहीं बदल सकता हूँ?
क्यों मैं इतना कमजोर हो गया हूँ?
की जिसे मैंने बनाया वो आज मेरे ऊपर ही हावी हो रही हैं
क्या मुझे खुद को बदलना होगा ??
क्या जिस तरह से मैंने इन कमजोरियों को पाला हैं
उसी तरह से मुझे अब अपनी ताकत को भी बढाना होगा ??
शायद हाँ !!! क्यूकि यह मेरी जिंदगी हैं
और कोई भी इसे अपने तरह से नहीं चला सकता
मेरे सिवा !!!
तो एहसास होता हैं की यह ही तो मेरी अपनी ही हैं क्यूकि इन्हें मैंने
ही तो इतना आगे बढने दिया हैं , मैंने अगर कभी पहले इन पर ध्यान
दे दिया होता तो शायद आज यह वो न होती जो यह आज हैं
फिर क्यों मैं इन को देख कर दुखी होता हूँ ? क्या कोई माँ -बाप अपने बच्चों से
नाराज़ होते हैं ??? नहीं !!! तो फिर क्यों मैं इनसे मुहँ छुपता फिरता हूँ
क्यों मैं अपने सच को मान कर इन्हें सही नहीं करता हूँ
क्यों आज भी मैं किसी और का इंतज़ार करता हूँ अपने आप को बदलने के लिए
क्यों आज भी मैं अकेले मैं आईने के सामने अपने प्रतिबिम्ब को देख कर आंसू बहाता हूँ
यह जो मेरी दुनिया हैं यह मेरी ही बनाही हुई हैं
तो क्यों मैं इसको नहीं बदल सकता हूँ?
क्यों मैं इतना कमजोर हो गया हूँ?
की जिसे मैंने बनाया वो आज मेरे ऊपर ही हावी हो रही हैं
क्या मुझे खुद को बदलना होगा ??
क्या जिस तरह से मैंने इन कमजोरियों को पाला हैं
उसी तरह से मुझे अब अपनी ताकत को भी बढाना होगा ??
शायद हाँ !!! क्यूकि यह मेरी जिंदगी हैं
और कोई भी इसे अपने तरह से नहीं चला सकता
मेरे सिवा !!!
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