Friday, September 17, 2010
हे इश्क!तू फिर आ गया ....
जाते हुए कदम मेरे ठिठक से गए है,
न जाने किसकी नज़र ने,मेरी नज़र को,संभलने से रोका हैं|
यूहि कब से खामोश सा खड़ा हूँ,एक ही जगह पर,
न जाने कौन हैं वो,जिसने आगे बढने से रोका हैं||
वो खुले बालों की,लटों मे से दिखती,शर्मीली सी हंसी
क्या यह वो तो नहीं,जिसने दो पल को,मेरे दिल को,धडकने से रोका हैं|
समज ही नहीं पा रहा की क्या हुआ ?
हकीक़त हैं या सिर्फ नजरो का धोखा हैं||
उसकी उन झुकी नज़रों ने,तो गज़ब का कहर ढहाया
बेसुध हूँ,बैचैन खड़ा हूँ
न बचा हूँ,न बचने का मौका हैं,
हे इश्क!तू फिर आ गया
हद करता हैं,न कभी खुद रुका हैं,न कभी मुझको रोका हैं
आसूँ
कोई मेरे अपनों से बिछड़ने को भी लिख देता,
अगर उन्हें मेरी फिक्र होती|
पर कभी किसी ने उन्हें ग़म बताया,
और किसी ने बोला मोती||
Thursday, September 16, 2010
प्यार को प्यार ही रहने दो,कोई नाम ना दो!
प्यार को प्यार ही रहने दो,कोई नाम ना दो!
आँखों से पी ली हैं थोड़ी,लबों को अब जाम ना दो,
उनको देखते ही यकीन हो उठता हैं,की मैं वो ना रहा|
दिल तो बच्चा हैं,उसे इलज़ाम ना दो|
प्यार को प्यार ही रहने दो,कोई नाम ना दो...
रिश्तों के मायने क्या हैं?यह तो मालूम नहीं
तुम अपने लरजते लबो से,इन लफ्जों को,नए आयाम ना दो|
यह दिल जो चाहता हैं उसे वोही करने दो,
नादान हैं,सिर्फ प्यार करता हैं,इसे कोई दूजा काम ना दो|
प्यार को प्यार ही रहने दो,कोई नाम ना दो...
हर धड़कन मुझे तेरे होने का एहसास देती हैं,
इस नब्ज़ को चलने दो,आराम ना दो|
शुरुवात ही इतनी खूबसूरत हैं,के दिल मेरा भरता नहीं,
रहने दो इसी हालत में,अभी कोई मुकाम ना दो |
प्यार को प्यार ही रहने दो,कोई नाम ना दो
नाम ना दो.....
Saturday, September 11, 2010
आँखें भी होती हैं दिल की जुबान !!
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न जाने उन्हें कैसे मालूम हुआ ,की दिल में क्या हैं?
हम ने तो आँखों से कहा था,खामोश रहना!
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Monday, September 6, 2010
मेरी कलम से....
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~आशिकी~
लोग हमेशा कहते हैं..
परवाने की चाहत हैं,
शमाँ पर मिट जाने की|
पर यह बेदर्द क्या समझेंगे,
उस आशिकी को ??
जिसको सज़ा मिली भी तो,
अपने महबूब को जलाने की ||
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दो बूँद समेठे बैठी हैं अपने आँचल में...
और लोग हैं की,उसमे ढूब जाने की बात करते हैं ||
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जिंदगी भर संभाले रखा,
तुझे इस जिस्म में...
ऐसा क्या मौत से दिल लगाया?
की चेहरा भी न दिखा सकी...
~आशिकी~
लोग हमेशा कहते हैं..
परवाने की चाहत हैं,
शमाँ पर मिट जाने की|
पर यह बेदर्द क्या समझेंगे,
उस आशिकी को ??
जिसको सज़ा मिली भी तो,
अपने महबूब को जलाने की ||
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दो बूँद समेठे बैठी हैं अपने आँचल में...
और लोग हैं की,उसमे ढूब जाने की बात करते हैं ||
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जिंदगी भर संभाले रखा,
तुझे इस जिस्म में...
ऐसा क्या मौत से दिल लगाया?
की चेहरा भी न दिखा सकी...
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