Tuesday, December 21, 2010

मत पूछ के कैसे जीता रहा मैं तेरे बगैर ?
बस देख के क्यों जीता रहा मैं तेरे बगैर ?

Thursday, December 16, 2010

उठो,जागो ... अब देश बचा लो ....! घोर कलयुग हैं आया रे ...!

ओबामा के पीछे पीछे
जिआबाओ भी आया रे ...
किसी को नहीं हमसे लेना देना
सब डॉलर की हे माया रे ...
उठो,जागो ... अब देश बचा लो
घोर कलयुग हैं आया रे ...

सोनिया के एक इशारे ने
हैं PM बनाया रे ...
लाखो करोडो डकार गया
पर "राजा" ने जबड़ा भी नहीं हिलाया रे...
उठो,जागो ... अब देश बचा लो
घोर कलयुग हैं आया रे ...

पर्लिअमेंट में धुल जमी हैं
पूछे बैठे,किसने कितना खाया रे ?
"कलमाड़ी" के "CWG " के बाद
अब "CAG "कुछ नया लाया रे...
उठो,जागो ... अब देश बचा लो
घोर कलयुग हैं आया रे ...

क्या फर्क पड़ा देश बेचा तो ?
पैसा तो जेब में आया रे..
भ्रष्टाचार का यह बादल
अब पुरे देश पे छाया रे..
उठो,जागो ...अब देश बचा लो
घोर कलयुग हैं आया रे ...

सब एक थाली के हैं चट्टे बट्टे
मिलके सबने हे गठबंधन बनाया रे..
क्या "Congress " क्या "BJP "
और कहा पीछे हैं "MAYA " रे..
सब खा गए मिल बाँट के हमको
न जाने किसने कितना खाया रे ..
उठो,जागो ...अब देश बचा लो
घोर कलयुग हैं आया रे ...

आगे बढती "RAJ " की "SENA "
"बुड्ढा शेर" घबराया रे..
"Jairam " के "Enivornment "ने
भी खूब हाहाकार मचाया रे..
पर "Antilla "का 70 लाख का बिल
किसी को नज़र नहीं आया रे..
कहीं लाखों "बल्ब" जले थे
कहीं अंधेरों का था साया रे..
कौन लिखेगा? कौन बोलेगा?
यह सब डॉलर की हैं माया रे ...
उठो,जागो ...देश बचा लो
घोर कलयुग हैं आया रे ...

मीडिया भी खुद बिका हैं
आम आदमी का असली चेहरा
कभी टीवी पे नहीं दिखाया रे
आरक्षण के मार से झुक गयी
सारे "talent " की काया रे..
उठो,जागो ...देश बचा लो
घोर कलयुग हैं आया रे ...

छुने दो मुझको ... सपने यह सारे..


यह उड़ते परिंदे ...
यह ऊँची मीनारे ...
वो फूलो की खुशबू...
वो झिलमिल सितारे...
छुने दो मुझको ...
सपने यह सारे..

राहों की मुश्किल ...
न खतरों से हारे...
जिंदगी जी ली ...
वादों के सहारे...
बस अब छुने दो मुझको
सपने यह सारे...

रोशन हो फिजायें ...
खुशियाँ हो द्वारे ..
मंजिले चूमेंगी..
अब कदम हमारे...
बस अब छुने दो मुझको
सपने यह सारे...

देखो यह पर मेरे ...
कैसे फड फडअरे ...
पाने दो मुझको
ये सूरज ये तारे...
बस अब छुने दो मुझको
सपने यह सारे...

Wednesday, December 15, 2010

न जाने कहाँ को हैं हम चले !



सूना हैं मंजर,सूनी हैं महफिले |
सुख गए सारे बगीचे,
जो हाल ही में थे खिले खिले ||
जब से छोड़ के उनको,न जाने कहाँ हो हैं हम चले !

याद नहीं की जूते कहाँ उतारे थे?
चलते चलते इतनी दूर आ निकले ,
पर अब चुबने लगे है छोटे छोटे कंकर पाँव में ,
जब से छोड़ के उनको ,न जाने कहाँ को हैं हम चले !

हम तो उनमे इतने मशगुल थे ,
की रास्तें भी ढंग से याद नहीं |
वो फिजा भी इतनी कातिल थी
के मदहोश हुए नज़ारें थे ,
बैठे थे हम तो ख्वाबों की छाहों के तले|
तभी मालूम नहीं की क्या हुआ,
जिनकों समझा रात में जुगनू
वो तो सब टूटे तारे निकले|
सब कुछ बदला बदला सा था ,
झूठे सब नज़ारे निकले ||
हम तो सोचे थे,मजबूत हैं रिश्ता हमारा|
पर पल भर को मुड़े,
तो सब कच्चे धागे निकले |
खुद की ही झुठलाते रहे ,
चोट लगी थी,घाव नए थे
ज़ख़्म वो ही पुराने निकले ||
पर अब सब कुछ बदला बदला सा हैं,
जब से छोड़ के उनको, न जाने कहाँ को हैं हम चले !

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