हंसी आती है मुझे
जब तू बराबरी की बात करती है
जूतियों की ठोकर पर रखता हूँ तुझे
और तू है, जो साथ उड़ने की चाह रखती है ..
और तू है, जो साथ उड़ने की चाह रखती है ..
इतनी सहमी सहमी डरी सी रहती है
फिर भी नए सवेरे की राह तकती है
मै! सदियों से तुझे दबाता आया हूँ
फिर भी नए सवेरे की राह तकती है
मै! सदियों से तुझे दबाता आया हूँ
और तू मुझसे ही बेड़ियाँ कटवाने की बात करती है
हंसी आती है मुझे ..
बाप बनता हूँ तो तुझपे घर की आबरू बोल बंदिश लगा देता हूँ
पति बनता हूँ तो कभी शराब,शबाब और कभी खुद के पौरुष के खातिर
दो चार जमा देता हूँ ..
भाई बनता हूँ तो तेरे हिस्से पे भी हक जता लेता हूँ
और बेटा होता हूँ तो अपनी आवाज़ उठा देता हूँ
और तू मुझसे तेरी हिफाजत की आस रखती है !
हंसी आती है मुझे ..
क्या तूने गौर क्या ?
दुनिया बनाने वाला भी मै हूँ
रास्ता दिखने वाला भी मै ही हूँ
भरे बाज़ार मे तुझे बिकवाने वाला भी मै हूँ
और घर की चार दिवारी मे रखवाने वाला भी मै ही हूँ
फिर भी तू मुझसे ही इन्साफ की चाह रखती है
हंसी आती है मुझे ..
मेरा दिल न मचल जाये इसलिए बुरखा तुझे मै ही ओधवाता हूँ
गलती मै भी करता हूँ पर इज्ज़त तेरी ही लुटवाता हूँ
तू एक नज़र भी उठा ले तो बदचलन तुझे बताता हूँ
इतना सब सहने पे भी तू मुझे अपना हमदर्द समझती है
हंसी आती है मुझे ..
तू छोटे कपडे पहने तो शालीनता का पाठ पढ़ाता हूँ
अपनी ही हवस के खातिर तुझे कोठो पे बिठवाता हूँ
तेरे बदन को खसोटकर ही अपना पुरषार्थ दिखाता हूँ
और तू चाहे सीता भी क्यों न हो ?
सच तो मै तुझसे ही साबित करवाता हूँ
और तू है ,जो मुझसे कदम मिलाने की बात करती है
हंसी आती है मुझे ..
ऐ अबला नारी !
कब तक तू युही मेरी रहमतो पे पलती रहेगी ?
कब तक तू युही मेरे खातिर खुद को बदलती रहेगी ?
कब तक तू ऐसे ही अकेली सुबकती रहेगी
तू अगर खुद के खातिर बराबरी का हक चाहती है
तो तुझे यह हक खुद से लेना होगा ..
यह ख़ामोशी का वक़्त नहीं ..
अब यह दर्द तुझे खुल के कहना होगा ..
खुल के कहना होगा ..!
अब यह दर्द तुझे खुल के कहना होगा ..
खुल के कहना होगा ..!