Sunday, July 25, 2010

कच्चे धागे


दो कदम पर ही साथ छुट गए,
कच्चे धागे थे ,सारे टूट गए|
जो निभा सके,वो चले आये,
बाकी सब सारे रूठ गए||

दिल वाले सारे जालिम थे,
घर बसाये,दिए जलाये,
और न जाने कितने सपने दिखाए|
फिर वक़्त आने पर,खुद ही उसको लूट गए||

समझ न आया की क्या करूँ?
हम तो हरियाली में भी ठूंठ गए|
खुद की हकीक़त से रूबरू हुए,
तो अश्कों के धारे फुट गए||

अब उदासी का क्या फायदा,
अब तो मौके भी हम से रूठ गए|
शायद वो आये थे मेरे मौके को भी मौका देने,
पर तब तक हम ही कहीं पीछे छुट गए||

कच्चे धागे थे शायद,टूट गए....टूट गए ...

1 comment:

Udan Tashtari said...

बहुत बढ़िया.

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