Thursday, September 25, 2008

रोता हूँ आज भी मैं अकेले में

रोता हूँ आज भी मैं अकेले में
भीड़ में भी तनहा हूँ,इस जिंदगी के मेले में

सूरज की रोशनी ढूंढ़ता हूँ आज भी अँधेरी रातों में
उलझ जाता हूँ मैं,अपनी बनाई बातों में

अश्क बहाता हूँ मैं अपनी चाहत की यादों में
और दीया लिए घूमता हूँ मैं तेज़ बरसातों में

क्यों गुम हो जाता हूँ मैं लोगो की आवाजों में
और अपनी आवाज़ छुपा लेता हूँ इन बेसुरे से साजो में

जिंदा हूँ अपने सपने,अपने अरमानो में
आज पूछा जाता हूँ न अपनों में,न बेगानों में

जिंदा लाश बन बैठा हूँ मिट्ठी के तहखानों में
फिर भी न जाता हूँ मैं इन रंगीन मेहखानो में

रोता हूँ जब आज भी मैं अकेले में
कश्ती बन बह जाता हूँ अपने अश्को के रेले में
भीड़ में भी तन्हा हूँ इस जिंदगी के मेले में

कुछ कर दिखाना होगा.....

बुझे चेहरों को मुस्कराना सिखाना होगा
हमें इस बंज़र ज़मीं को गुलशन बनाना होगा
किसी अपने को बेगाना बनाना बहुत आसान हैं साकी
हमें अब दुश्मन को भी गले लगाना होगा

वक्त को रोकना तो मुश्किल हैं
पर ख़ुद को उसके साथ चलना सिखाना होगा
हर मुश्किल से लड़ सके
ख़ुद को इतना सक्षम बनाना होगा
हमें अब दुश्मन को भी गले लगाना होगा

राही को जीवन की मझधार से बचाना होगा
मंजिल पाने के लिए कुछ कर दिखाना होगा
चिडियों को भी बाजों से लडाना होगा
अब दुश्मन को भी गले से लगाना होगा
कुछ कर दिखाना होगा-कुछ कर दिखाना होगा||

अकेला



वक्त कतरा-कतरा कर बह गया
मैं अकेला था,अकेला ही रह गया|
मेरी कमजोरियों को मैं सह गया
और मेरे सपनो का महल,ख़ुद-ब-ख़ुद ढह गया ||

वाकिफ न था मैं इस जालिम दुनिया के रिवाजों से,
अपने ही बनाये सागर में,ख़ुद ही बह गया|
अकेला था,अकेला ही रह गया||

मेरी हर खुशी,मेरा हर अरमान
मेरे ही आंसुओ में बह गया|
और हर निकलता लम्हा मेरे कानो में यह कह गया,
की तू अकेला था,अकेला ही रह गया||

हर वक्त खुशी ढूंढ़ता,और अपनी ही कठिनाइयो से लड़ता|
बस जीने की यही कोशिश हर बार करता रह गया,
और मंजिल को और बढता हर कदम बस यही कह गया

की तू अकेला था,अकेला रह गया
और युही वक्त,कतरा -कतरा कर बह गया||

विजयी मंत्र


अपने हर कदम,हर लक्ष्य पर विचार कर
अपनी जीत,अपनी हार,सब चीज़ को स्वीकार कर

हर कमजोरी पर,विश्वास का प्रहार कर
हर लक्ष्य पर तू जीत की हुंकार भर

चल निकल और सफर इख्तियार कर
और इस डगर पर बढ़ मंजिल को तू पार कर

गौतम,महावीर,मोहम्मद का प्रचार कर
स्वीकार कर,स्वीकार कर,इंसानियत स्वीकार कर

इस राह पर चल अपनी आत्मा का उद्धार कर
और जोश,होश से अपनी जीत का इंतज़ार कर

Wednesday, September 24, 2008

मेरा परिचय



कभी रोता हूँ,कभी हँसता हूँ,
हर इंसान के किसी कोने में,"मैं" बसता हूँ|
उस की हर चाहत को,थोड़ा ही सही,मैं,समझता हूँ ||

कभी दौड़ता हूँ,तो कभी थक कर बैठ जाता हूँ,
अपनी जीत,अपनी हार,सब पर मुस्कराता हूँ|
हारना भी जरुरी हैं,इस बात को भी मैं,समझता हूँ||

जलता हैं परवाना,शंमा के पास जाने पर,
ख़ुद दीवाना हूँ|
इसलिए परवाने की इस चाहत को भी मैं,समझता हूँ||

चाहे आग की तपीश हो,या किसी बेसहारा का गम
लिखता हूँ,इसलिए हर दर्द समझता हूँ|

अगर किसी जंग में अकेला हूँ तो क्या,
मैं हर वक्त इस कलम को,अपनी ताकत,समझता हूँ |

Saturday, September 20, 2008

दंगे-एक अमानवीय त्रासदी

भारत आज़ादी के बाद से कई दंगो का साक्षी रहा हैं |हजारो लोग इस मानवीय त्रासदी का हिस्सा ब चुके हैं|
मज़हब के नाम पर खेले जाने वाले इस खूनी खेल का हिस्सा कोई विशेष मजहब को मानने वाला इंसान नही,एक आम इंसान हैं ..क्योंकि मारने पर उतारू भीड़ सामने आने वाले का मजहब नही पूछती हैं|उस का शिकार कोई भी बन जाता हैं|२००२ में गुजरात में हुआ "गोधरा कांड" और अमरनाथ में ज़मीन के विवाद के बाद उत्पन्न हुए हालात इसके ज्वलंत उदाहरण है |अगर हम इन दंगो के हालातो को ध्यान से देखे तो पाएंगे की यह सब कुछ "तुच्छ" किस्म के लोगो द्वारा स्वय के फायेदे के लिए उठाये गए ग़लत कदमो का नतीजा है|दंगो की वजह से न केवल जान-माल का नुक्सान होता है बल्कि दुनिया में सांप्रदायिक एकता की मिसाल हमारे "भारतवर्ष "की प्रतिष्ठा को भी भीषण आघात पहुँचता है| दंगो की भयावह तस्वीर मैंने चंद पंक्तियों के जरिये आपके सामने रखने की कोशिश की है ....


दंगो की आग,जलते हुए घर
आतंकी तलवार,मानवता का सर
रोते लोग,बेजान,बेघर
जेहाद का मुखौटा,मारने को तत्पर
खून की होली,मरने का डर
आम आदमी,बैठा छुपकर
बिलखते बच्चे,खूनी अम्बर
बमों की चीखे,सुनी देशभर
कब उठेगा,इंसान,इन सब से ऊपर??

जैसा की पहले भी अपने लेख में ज़िक्र किया है की इन हालातो से ऊपर हम तभी आ सकते है जब सारा देश एक साथ एकजुट होकर इनका सामना करे और चंद मजहबपरस्त लोगो के बहकावे में न आए|दूसरी ओर गरीबी और अशिक्षा भी ऐसे हालातो को जन्म देने का कारण है इसलिए हमें चाहिए की हम घरेलु व्यवसायों को बढावा दें ओर अपने आस पास के गरीब बच्चो को शिक्षा की ओर खिचे...ओर सक्षम और शिक्षितलोग समाज के सुधार के लिए आगे आए और इसे अपना कर्तव्य समझे|

आईये देश के विकास में योगदान दीजिये ओर धर्मनिरपेक्ष भारत की प्रतिष्ठा को बनाये रखिये |
जय
हिंद

ए.बी.यू रोबोकोन 2008 ---तकनीक से रूबरू

भारत
ज्ञान का सिरमौर और अपने अतिथिसत्कार के लिए प्रसिद देश----और इन विशेषताओ का जीवांतउदहारण बना तकनीकी दक्षता का खेल -.बी.यू रोबोकोन


.बी.यू रोबोकोन--एशिया-प्रशांत महाद्वीप के प्रसारण समूहों द्वारा साझा रूप से किया गया प्रयास...
सन२००२ में प्रारं किया गया यह आयोजन आज एक सफल और वैश्विक रूप ले चुका हैं..और तकनीकी दुनिया में अपना एक अलग स्थान बना चुका हैं|इस विशाल तकनीकी मेले का सफल आयोजन करना भी एक चुनौती का काम हैं और इस वर्ष इस तकनीकी महाकुम्भ का आयोजन करने का मौका मिला हमारे देश भारत को|'दूरदर्शन' भारत की तरफ़ से प्रसारण समूह का हिस्सा हैं|इसलिए इस मेले का आयोजन दूरदर्शन और एम्.आइ.टी पुणे समूह द्वारा साझा रूप से किया गया|इस खेल की परम्परा अनुसार हर वर्ष इस मेले का आयोजन करने वाला देश ही इसमे होने वाले खेल का विषय चुनता हैं..और क्योंकि भारत में इसका आयोजन हो रहा था इसलिए इसका विषय चुना गया..भारत में मनाया जाने वाले एक विशेष त्योहार ..."जन्माष्टमी" ..इस त्यौहार में एक सांकेतिक खेल का आयोजन किया जाता हैं जो की "दही-हांडी" के नाम से प्रसिद्द है|इस खेल में गोविन्दाओं को मानव सूचीस्तंभ का निर्माण कर ऊचाई पर लगी हंडी को फोड़ना होता हैं पर इस बार यह काम करना था मानव निर्मित मशीनों को... और मशीनों द्वारा किए जाने वाला कृत्य अपने आप में एक अजूबा था | एम्.आइ.टी का छात्र होने के नाते मुझे मौका मिला इस महामेले को प्रत्यक्ष रूप से देख पाने का...
पूरे महाद्वीप से आई विभिन् देशो की तकनीकी दक्षता को देख पाना और मशीनों को आदमी के द्वारा किए जाने वाले कृत्य करतेदेखना मेरे जैसे किसी भी इंजिनियर के लिए सौभाग्य की बात होगी...इस तरीके के आयोजनों से केवल एक दुसरे की तकनीकी दक्षता को समझने का मौका मिलता हैं बल्कि हमें एक दुसरे की संस्कृतियो और परम्पराओ को जानने का भी मौका मिलता हैं
अब वापस से तकनीकी दक्षता की बात करते हैं..इस बार हमें चीन,हांगकांग,कोरिया,इंडोनेशिया,मिश्र..और इन जैसे कई छोटे बड़े देशो के द्वारा बनाये गए दक्ष यन्त्रमानवों को देखने और उनमे उपयोग में लायी गई तकनीक को पास से देखने का मौका मिला..और उन्हें देख कर लगा की इतने छोटे देश भी भारत जैसे विशालकाए देश से तकनीकी रूप से कई गुना बेहतर हैं...हालाँकि ऐसा नही हैं की भारत तकनीकी रूप से असक्षम या कमज़ोर हैं लेकिन फिर भी हमें अभी कई दिशाओ में अपना विकास करना हैं और अपने आप को दुनिया के समकक्ष लेकर आना हैं |
इस तरीके के आयोजन देश के तकनीकी विकास और शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकते हैं|इस प्रकार के आयोजन के लिए हमें दूरदर्शन और एम्.आइ.टी, पुणे समूह का आभारी होना चाहिए जिन्होंने अपने दृढ निश्चय के बल पे इस महाकुम्भ को सफलता पूर्वक आयोजन किया और देश के इंजीनियरिंग छात्रों और संस्थानों के लिए नए द्वार खोले...

अंत में यही कहना चाहूँगा की हमें कोशिश जारी रखनी होगी और अपने आप को तकनीकी दुनिया की नई ऊचाइयों तक पहुचाना होगा.......और यही कहूँगा

"जो सफर इख्तियार करते हैं,
वो ही मंजिल को पार करते हैं|
बस एक बार चलने का हौसला तो रखिये,
ऐसे मुसाफिरों का तो रास्ते भी इंतज़ार करते हैं||"

जय हिंद.

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