वक्त कतरा-कतरा कर बह गया
मैं अकेला था,अकेला ही रह गया|
मेरी कमजोरियों को मैं सह गया
और मेरे सपनो का महल,ख़ुद-ब-ख़ुद ढह गया ||
वाकिफ न था मैं इस जालिम दुनिया के रिवाजों से,
अपने ही बनाये सागर में,ख़ुद ही बह गया|
अकेला था,अकेला ही रह गया||
मेरी हर खुशी,मेरा हर अरमान
मेरे ही आंसुओ में बह गया|
और हर निकलता लम्हा मेरे कानो में यह कह गया,
की तू अकेला था,अकेला ही रह गया||
हर वक्त खुशी ढूंढ़ता,और अपनी ही कठिनाइयो से लड़ता|
बस जीने की यही कोशिश हर बार करता रह गया,
और मंजिल को और बढता हर कदम बस यही कह गया
की तू अकेला था,अकेला रह गया
और युही वक्त,कतरा -कतरा कर बह गया||
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