Saturday, September 20, 2008

दंगे-एक अमानवीय त्रासदी

भारत आज़ादी के बाद से कई दंगो का साक्षी रहा हैं |हजारो लोग इस मानवीय त्रासदी का हिस्सा ब चुके हैं|
मज़हब के नाम पर खेले जाने वाले इस खूनी खेल का हिस्सा कोई विशेष मजहब को मानने वाला इंसान नही,एक आम इंसान हैं ..क्योंकि मारने पर उतारू भीड़ सामने आने वाले का मजहब नही पूछती हैं|उस का शिकार कोई भी बन जाता हैं|२००२ में गुजरात में हुआ "गोधरा कांड" और अमरनाथ में ज़मीन के विवाद के बाद उत्पन्न हुए हालात इसके ज्वलंत उदाहरण है |अगर हम इन दंगो के हालातो को ध्यान से देखे तो पाएंगे की यह सब कुछ "तुच्छ" किस्म के लोगो द्वारा स्वय के फायेदे के लिए उठाये गए ग़लत कदमो का नतीजा है|दंगो की वजह से न केवल जान-माल का नुक्सान होता है बल्कि दुनिया में सांप्रदायिक एकता की मिसाल हमारे "भारतवर्ष "की प्रतिष्ठा को भी भीषण आघात पहुँचता है| दंगो की भयावह तस्वीर मैंने चंद पंक्तियों के जरिये आपके सामने रखने की कोशिश की है ....


दंगो की आग,जलते हुए घर
आतंकी तलवार,मानवता का सर
रोते लोग,बेजान,बेघर
जेहाद का मुखौटा,मारने को तत्पर
खून की होली,मरने का डर
आम आदमी,बैठा छुपकर
बिलखते बच्चे,खूनी अम्बर
बमों की चीखे,सुनी देशभर
कब उठेगा,इंसान,इन सब से ऊपर??

जैसा की पहले भी अपने लेख में ज़िक्र किया है की इन हालातो से ऊपर हम तभी आ सकते है जब सारा देश एक साथ एकजुट होकर इनका सामना करे और चंद मजहबपरस्त लोगो के बहकावे में न आए|दूसरी ओर गरीबी और अशिक्षा भी ऐसे हालातो को जन्म देने का कारण है इसलिए हमें चाहिए की हम घरेलु व्यवसायों को बढावा दें ओर अपने आस पास के गरीब बच्चो को शिक्षा की ओर खिचे...ओर सक्षम और शिक्षितलोग समाज के सुधार के लिए आगे आए और इसे अपना कर्तव्य समझे|

आईये देश के विकास में योगदान दीजिये ओर धर्मनिरपेक्ष भारत की प्रतिष्ठा को बनाये रखिये |
जय
हिंद

2 comments:

Unknown said...

dude that's gr8 that u take out time to visualise the current scenario to the present day youth...
commendable work...feels good that someone i know is writing this.
kudos man.
keep up the good wrk and ya keep blogging
Anshu Kumar
anshumasco.blogspot.com

डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल said...

बहुत बढिया और सामयिक टिप्पणी के लिए बधाई. लेकिन एक गलती को जल्दी से ठीक कर लीजिए. आप लिखना चाहते थे 'धर्म निरपेक्ष' और लिख गए हैं 'साम्प्रदायिक'. हमें साम्प्रदायिक भारत की प्रतिष्ठा को थोड़े ही बचाना है. इससे अर्थ का अनर्थ हो रहा

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