Wednesday, June 9, 2010

ऐ वक़्त ! तू जरा तो ठहर .....



ऐ वक़्त! जरा तो ठहर
मुझे मेरे यार से तो मिल आने दे..
इतनी भी क्या बैचैनी हैं
दो वादें तो निभाने दे..
मेरे मन की जो मायूसी हैं
इन्हें आँखों से बह जाने दे..
ऐ वक़्त!जरा तो ठहर
मुझे खुद को उसके बिन जीना तो सिखाने दे..

कैसे यह मेरा नाजुक दिल !
आँखों को रोना और होठों को मुस्कुराने दे..
उसके हर एक पल के साथ को
यह कैसे यादों में बह जाने दे..
डर लगता हैं कही खुद को खो न दूँ
मुझे कमसकम उस डर को तो मिटाने दे..
ऐ वक़्त!तू थोडा तो ठहर
मुझे मेरे प्यार को तो भुलाने दे...

कैसी दुनिया हैं यह !
कहती हैं सब बदल जायेगा
बस तू वक़्त को बदल जाने दे..
ऐ वक़्त! तू इनकी न सुन
बस एक बार तो उसकी तस्वीर
इन आँखों में बस जाने दे..
ऐ वक़्त ! तू जरा तो ठहर
बस एक आखरी बार तो मुझे मेरे प्यार को जताने दे..

1 comment:

आचार्य उदय said...

आईये जानें … सफ़लता का मूल मंत्र।

आचार्य जी

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