Tuesday, February 9, 2010

शुरुआत

आज आखिर वो बात हो ही गई,
नज़रों ही नज़रों में मुलाकात हो ही गई|
कुछ वो शरमाए,कुछ हम घबराए|
"मैं","आप"में दो बात हो ही गई||

सपने महके,बादल गरजे|
और न जाने कैसे बरसात हो ही गई||
बातों-बातों में जाने कब रात हो गई|
और यूँ उस नए रिश्तों की शुरुआत हो ही गई||

अपने-अपने रास्तें जाने का वक़्त आया,
तो दिल की बैचेनी से मुलाकात हो ही गई|
नज़रें मिली,मुस्कान छुटी तो,
बस कल फिर मिलने की बात हो ही गई .... ||

3 comments:

रानीविशाल said...

Bahut payari sundar si dil ko bud budati rachana.....Badhai swikar kare!!
http://kavyamanjusha.blogspot.com/

Udan Tashtari said...

बहुत बेहतरीन!

रंजना said...

Waah...Pravaahmayi mugdhkari bahut hi sundar geet...

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