Sunday, February 7, 2010

मंथन

कभी कभी इन खामोश नजरो से अपनी कमजोरियों की और देखता हूँ

तो एहसास होता हैं की यह ही तो मेरी अपनी ही हैं क्यूकि इन्हें मैंने

ही तो इतना आगे बढने दिया हैं , मैंने अगर कभी पहले इन पर ध्यान

दे दिया होता तो शायद आज यह वो न होती जो यह आज हैं

फिर क्यों मैं इन को देख कर दुखी होता हूँ ? क्या कोई माँ -बाप अपने बच्चों से

नाराज़ होते हैं ??? नहीं !!! तो फिर क्यों मैं इनसे मुहँ छुपता फिरता हूँ

क्यों मैं अपने सच को मान कर इन्हें सही नहीं करता हूँ

क्यों आज भी मैं किसी और का इंतज़ार करता हूँ अपने आप को बदलने के लिए

क्यों आज भी मैं अकेले मैं आईने के सामने अपने प्रतिबिम्ब को देख कर आंसू बहाता हूँ

यह जो मेरी दुनिया हैं यह मेरी ही बनाही हुई हैं

तो क्यों मैं इसको नहीं बदल सकता हूँ?

क्यों मैं इतना कमजोर हो गया हूँ?

की जिसे मैंने बनाया वो आज मेरे ऊपर ही हावी हो रही हैं

क्या मुझे खुद को बदलना होगा ??

क्या जिस तरह से मैंने इन कमजोरियों को पाला हैं

उसी तरह से मुझे अब अपनी ताकत को भी बढाना होगा ??
शायद हाँ !!! क्यूकि यह मेरी जिंदगी हैं

और कोई भी इसे अपने तरह से नहीं चला सकता

मेरे सिवा !!!

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