Monday, October 11, 2010

अक्स


मैं जो हूँ,वो तेरा एक अक्स हूँ|
खुद का मेरा कुछ न बना,
जो भी हूँ, बस एक अक्स हूँ||

पैदा होने से,घर वालो के सपनो का,
बस आगे बढता, एक लक्ष्य हूँ|
जो भी देखा,जो भी समझा,
उसको अपनाने में दक्ष हूँ|
खुद को तो पा ना सका,
बस झूठे अक्सो में घूमता,
धुंधलाता एक अक्स हूँ||

मुझ से मेरा कुछ ना बना,
जो भी था या जो भी हूँ |
भटकता हुआ एक अक्स हूँ |
जब भी खुद को ढूंढा मैंने
शीशा भी बोला मुझसे,
सच का तो पता नहीं ,
जो भी हूँ बस एक अक्स हूँ||

जिंदगी को तो मैं पा ना सका
पूरा वक़्त दौड़ा, सपनो के पीछे
आखिर में जो भी मिला
वो खुद रुक के मुझ से पूछा
क्या मैं ही तेरा लक्ष्य हूँ?
जब मैंने पीछे देखा
तो मुझ मैं मेरा कुछ ना था
अब तो लगता हैं की जिन्दा भी हूँ,
या सिर्फ एक झूठा अक्स हूँ ||

जिंदगी जी ली दुसरो के खातिर
अब ए जिंदगी! यह तो बता दे
की तू तो सच हैं ?
कही ऐसा ना हो की तू भी बोले
मैं वो नहीं,उसका ही एक अक्स हूँ|

मेरा खुद का कुछ ना बना
बस धुंधलाता एक अक्स हूँ...
बस एक अक्स हूँ..सिर्फ अक्स हूँ ||

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