Friday, October 15, 2010

आज चाँद मुस्कुरा रहा था...!



आज मुझे देख,चाँद मुस्कुरा रहा था
तुम नहीं हो साथ मेरे,
यह अकेलापन खाए जा रहा था|
आकाश में दिखते वो झिलमिल सितारे ,
शायद खुदा तेरे आने की आस में,
दिए जला रहा था ||
आज मुझे देख,चाँद मुस्कुरा रहा था...!

धीमे धीमे से छूती वो कोमल हवाएं,
लगा जैसे तेरा आँचल लहरहा रहा था |
कहीं दूर से आती गानों की आवाजें,
मानो कोई अपना,गुनगुना रहा था ||
आज मुझे देख,चाँद मुस्कुरा रहा था...!

तेरी कमी को कैसे पूरा करता,
मैं तस्वीरो से ही घंटो बतिया रहा था |
मुझे क्या मालूम था, की तुझे भुला न पाऊंगा?
जब मैं रो रहा था,तब मुझे देख,चाँद मुस्कुरा रहा था...!

1 comment:

RAVINDRA said...

बहुत प्यारा लिखा है

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