हम लोगो के दर्द समझते रहे ..
और लोग हमें बेदर्द समझते रहे .. !
मेरे दुश्मन भी वो लोग निकले ...
जिन्हें अपना हमदर्द समझते रहे ...!
हमें क्याँ मालूम था की इश्क वहाँ से मिलेगा
जिन रिश्तों को हम सर्द समझते रहे ...!
हम तो खामोखा उनको बेदर्द समझते थे ...
पर वो थे जो चुपके से मेरा दर्द समझते रहे ...!
मेरा दर्द समझते रहे...!
No comments:
Post a Comment