Sunday, July 26, 2009

धर्म-पार्ट 1

आज जो बात मैं यहाँ करने जा रहा हूँ वो शायद मेरे ओर आपके अस्तित्व को ही हिला कर रख दे.....
कुछ दिनों से मेरे मन में एक बात चल रही थी, एक दिन मैं मेरे दोस्तों के साथ बैठा था तो हम लोग आपस मैं बात कर रहे थे,मेरा एक बंगलादेशी दोस्त बोल रहा था की उनके यहाँ पर हिन्दुओ को बहुत परेशानी का सामना करना पड़ता हैं|बांग्लादेश एक मुस्लिम देश हैं तो उन लोगो के साथ अच्छा बर्ताव नही किया जाता हैं|तो वो बता रहा था की मुस्लिम लोग अच्छे नही हैं,मैं भी वही था,हालाँकि मेरी सहमति के बाद ही उसने यह सब बोलना शुरू किया.....

पर उस दिन के बाद से जो चीज़ मेरे दिमाग मे चल रही थी वो ओर तेज़ी के साथ चलने लगी....वो बात थी "धर्म" के बारे में|मैं यह सोच रहा था की जिस इस्लाम को में मानता हूँ,ओर मैं ख़ुद एक मुस्लमान हूँ(सिर्फ़ इसलिए क्यों की मुस्लिम परिवार में पैदा हुआ हूँ,मैं आगे अपने धर्म के बारे में लिखूंगा ) उस हिसाब से जिस धर्म को में मानता हूँ वो तो किसी ओर तंग करने का या लोगो का बुरा करने का नही कहता...तो फिर मेरा दोस्त जिन लोगो के बारे में बात कर रहा हैं वो कौनसे धर्म के हैं? वो सही वाले मुस्लिम हैं या मैं सही धर्म को जानता हूँ?या हम दोनों ही उस धर्म के नही हैं ??
यह कुछ बातें मेरे जेहन में उठने लगी जिन्होंने मुझे हिला कर रख दिया|मुझे यह सोचने पर मजबूर कर दिया की "धर्म" क्या हैं?और कौन सही हैं में या वो??
इन सवालो के जवाब में मुझे जो मिला वो बहुत ही खतरनाक था ,और जिसका जवाब शायद हमारे वजूद को हिला के रख दे.......

मैंने जब इस बात पर सोचना शुरू किया तो उसका यह परिणाम निकल के आया............




"फिलहाल मेरा कोई मजहब(धर्म) नही हैं,मेरा नाम इस्लाम के साथ जुडा हैं क्योंकी यह नाम मुझे मेरे परिवार से मिला हैं,या यूँ कहूँ इश्वर को पाने का यह रास्ता मेरे घर वालो ने चुना,और उनके हिसाब से येही सब से अच्छा और सही रास्ता हैं,इसलिए उन्होंने मुझे भी इसी रस्ते पर चलना सिखाया"


इस बात से यह तो साफ़ हो गया की "धर्म" सिर्फ़ रस्ते हैं ईश्वर तक पहुचने का|और अभी मैं उसी हालत में हूँ जिस हालत में जब पैदा हुआ था तब था सिर्फ़ इतना अन्तर हैं की मेरे साथ मेरे रस्ते का नाम जोड़ दिया गया हैं,जिस पर मैं कभी चला या चलना चाहूँ यह नही पता|

पर एक बात जो मेरे को बार बार विचलित कर रही हैं वो हैं की मैं मुस्लमान हुआ कहा?उदहारण के लिए मैं इंजीनियरिंग का स्टुडेंट हूँ,पर अभी न तो मेरे पास डिग्री हैं न कोई एक्सपेरिएंस,तो क्या मैं इंजिनियर हूँ??अगर मैं किसी इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला ही न लूँ या मैं इंजीनियरिंग की पढ़ाई ही न करूँ तो क्या मैं इंजिनियर बन पाऊंगा??....इसका जवाब न ही हैं,उसी तरह जिस "धर्म" को अभी मैंने 5% भी नही जाना उसके साथ मेरा नाम जोड़ दिया गया और यह मान लिया गया की मैं उस धर्म का हूँ क्या यह सही हैं???
क्यों मुझे पहले धर्म के बारे में जान लेने नही दिया गया??
जब मैं पैदा हुआ था तब तो मेरे नाम के आगे इंजिनियर नही लिखा गया था तो यह धर्म क्यों जोड़ दिया गया?
क्या यह सही हैं की जिस रास्ते पर मेरे पूर्वज चले हैं उससे रास्ते पर मैं भी चलूँगा तो मुझे ईश्वर मिल ही जाएगा.......हाँ यह जरुर हैं की इस रास्ते को उन्होंने जाना हैं इसलिए उन्होंने मुझे इस पर चलने की सलाह दी गई
पर यहाँ कही ऐसा नही लगता की यह मुझ पर थोपा गया हैं???

यहाँ मैं मेरे साथ हुई किसी बात को नही लिख रहा हूँ....यह सब तो वो सवाल हैं जो हर इंसान को अपने आप से पूछने होंगे...मैं और मेरा परिवार सिर्फ़ इसका हिस्सा हैं|यह तो सबसे बेसिक प्रश्न हैं....क्या आपने कभी अपनी जिंदगी का थोड़ा सा भी वक्त इस बात के लिए निकला हैं???

क्या आपको लगता हैं वो लोग जो "धर्म" के नाम पर ग़लत काम करते हैं वो उस धर्म के हैं ...दुनिया का शायद ही कोई धर्म आतंक फैलाने को कहता होगा|तो फिर वो लोग जिनके बारे में मेरा दोस्त कह रहा था क्या वो भी मेरी तरह के मुस्लमान हैं जिनका नाम तो यह कहता हैं की वो मुस्लिम हैं पर वो उस धर्म के नही हैं|तो आप ही बताइए की अगर कोई आदमी जो नाम से मुस्लमान हो और उसको उस धर्म का कुछ भी ज्ञान न हो तो उसका उस धर्म से क्या वास्ता??

मतलब इंसान ग़लत हो सकता हैं धर्म नही.......
तो फिर क्यों हर आदमी को पैदा होते ही एक धर्म का तमगा पहना दिया जाता हैं,जिस पर वो बाद में चले या नही
पर उसे उस धर्म के नाम का ग़लत फायदा उठाने का मौका मिल जाता हैं ???
क्या यह आतंकवाद और यह सब इसलिए ही तो नही हो रहा क्युकि हम कही कमझोर पड़ रहे हैं.....कोई बहुत छोटी सी चीज़ जो हमारे मूल से जुड़ी हुई हैं और जिसपे हम बात करने से डरते हैं या करना ही नही चाहते ??यही उसका कारण हैं ??

6 comments:

निर्मला कपिला said...

तन्मय् ये बहुत सही प्रश्न उठाया आपने असल मे ये प्रश्न उस इन्सान के दिमाग मे ही चलता है जो धर्म मे नहीं बल्कि अध्यात्म को जानता है धर्म को नहीं धर्म की मानता है सब धर्मों का सार तो एक ही है हम लोग ही उसे परिवेश और परिस्थितियों के अनुसार ढाल लेते हैं बहुत बडिया आगे और भी इस विषय पर आलेख का इन्तज़ार रहेगा shubhakaanayen

Gorkey.Godara said...

तो जनाब आमिर उर्फ़ "तन्मय" आपने बिलकुल सही फ़रमाया की बदलते वक़्त के परिद्रश्य में धर्म की परिभाषा भी बदल चुकी है ...... आज लोग पुरानी लीक से हटकर नया सोचने लगे हैं और रुडियो और दकियानूसी बातों से आगे बाद गए हैं ....... मैंने कहीं पदा था की धर्म सिर्फ एक केले के छिलके की तरह है और आध्यात्मिकता अन्दर का फल है .... धर्म का आर्विभाव इसलिए हुआ था की इन्सान अपने अन्दर की यात्रा करे और अपने वजूद का कारण तलाश करे .... पर इन्सान ने छिल्का रख लिया और केला फेंक दिया [:(] .... यहाँ एक बात और कहना चाहूँगा की इसी दोगलेपन की वजह से समाजवाद का जन्म हुआ जब मार्क्स ने कहा की " धर्म एक अफीम है जिसे समाज को सुलाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है " ...... और आधी दुनिया आज उस समाजवाद को मानती है .... पर आज नयी नस्ल ज्यादा जागरूक और संवेदनशील है और उसे बरगलाना आसन नहीं ...... चिंता की बात नहीं है हम वक़्त को बदलेंगे ....

Himanshu Pandey said...

"मतलब इंसान ग़लत हो सकता हैं धर्म नही......."

यही तो है सार संक्षेप - लिख ही दिया है आपने । बेहतर तरीके से अपनी संवेदना को अभिव्यक्त करने की कोशिश की है आपने । धन्यवाद ।

डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल said...

आपने एक बहुत ही संवेदनशील मुद्दे को उठाया है. बाबा तुलसीदास ने बहुत उम्दा बात कही थी: "परहित सरिस धरम नहीं भाई/ पर पीड़न सब नहीं अधमाई" तो मैं नहीं सोचता कि धर्म की इससे बेहतर कोई परिभाषा हो सकती है. नरसीं मेहता ने जब गाया कि वैष्णव जन तो तेने कहिए जे पीर पराई जानै रे... तो वे भी यही बात कह रहे थे. आप सही कह रहे हैं कि सभी धर्म अच्छी बातें ही कहते और सिखाते हैं. लेकिन इस बात पर भी तो विचार कीजिए कि हमारे समय की बहुत सारी खराबियों की जड़ में भी तो धर्म ही है.कट्टरता (किसी खास धर्म की नहीं, सभी की) धर्म के नाप पर ही तो फैलाई जा रही है. इसलिए, यह कह कर नहीं बचा जा सकता कि सारे धर्म अच्छे हैं. यह अर्ध सत्य है. किताब के अच्छे होने से क्या होता है? यह भी तो देखिए कि उसे अमली जामा पहनाने में कहां ग़लती हो रही है? यह एक लंबी बहस का विषय है, और बात चलती रहनी चाहिए.

keep smiling said...

dear aamir, this is nemichand pareek DTO.
i wonder how a teenager like u can think so deep on a subject which even many thinkers fear to deal with. i just congratulate u 4 this line of thinking. but at the same time i am rather concerned about u.
9t bcoz i doubt ur ability regarding this. but coz dharm in 2days world is completetly a mistaken concept and is being USED by its so called rakhshak 4 their vested interests. so dear take care of this.
i would love to be a part of this CHINTAN.

Ambuj said...

bahuk khoob khan khan saabh. Theek farmaya aapne.

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