Friday, March 18, 2011

शहज़ादी...!



धुप सुनहरी जब घट जाती हैं,
जब इंतज़ार में घड़ियाँ कट जाती हैं |
जब चढ़ने लगता हैं,
उसका नशा फिजा पर भी |
तब चुपके से,कही दूर से,
एक शहज़ादी आती दिखती हैं |

यह हवाएँ महकने लगती हैं,
यह घटाये चहकने लगती हैं |
यह फ़राज़ भी सिंदूरी हो जाता हैं,
यह मौसम भी गुनगुनाता हैं |

सब कुछ थम सा जाता हैं,
सब कुछ बदल सा जाता हैं |

मेरे चेहरे पे देखो,
वो ख़ुशी कुछ अलग सी होती हैं|
हर रोज़ मेरे इश्क में,
एक नयी ललक सी होती हैं |
यह दिल की धड़कन देखो,
कैसे यु बढ़ जाती हैं !
इस मुस्कराहट को देखो ,
कैसे छुट ती जाती हैं !
यह सब कुछ सपना लगता हैं,
पर फिर सब कुछ अपना लगता हैं|
वो चुपके से ,तुम जो आ जाती हो..|
तुम जो आ जाती हो ....!|

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