Friday, March 13, 2009

मेरे अन्दर की होलिका तो जलती ही नहीं हैं...

आप सभी को होली मुबारक हो !!




















मेरे
अन्दर की होलिका तो जलती ही नहीं हैं
रंग तो चढ़ते हैं अनेक पर,यह काली सी सीरत बदलती नहीं हैं।
राग द्वेष की इस वेदी पर,प्रेम की सूरत सँवरती नहीं हैं
जलाता तो हूँ हज़ार होलिकाए,पर मेरे अन्दर की होलिका तो जलती ही नहीं हैं॥

प्यार के रंग में भरता हूँ पिचकारी तो,
मजहब की चोटी पर चढ़ती नहीं हैं।
अरे!कैसी पिचकारी हैं यह,मानव को मानव समझती नहीं हैं
मेरे अन्दर की होलिका तो जलती नहीं हैं॥

इन खूबसूरत रंगों का मतलब तो समझो
यह रंगीनिया बेमानी हैं,अगर जीवन में खुशियों को भरती नहीं हैं।
इन हजारो होलिकाओ को जलाने का क्या फायदा??
जब अन्दर की होलिका तो जलती नहीं हैं॥

1 comment:

Maulik Chandarana said...

i like this sir....very good....u write issues which r contemporary...guess that's very nice.....

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