Wednesday, March 25, 2009

नादान हूँ, तुझसे ही प्यार करता हूँ||


मैं ही हमेशा इजहार करता हूँ,
क्यों तेरे जवाब का इंतज़ार करता हूँ|

यही खता मैं बार बार करता हूँ,
चाहते हुए भी तुझसे ही प्यार करता हूँ||

शायद नादान हूँ तेरी फितरत से जालिम,
क्यों तेरी सोच में वक्त बेकार करता हूँ|

काटता हैं मुझे अकेलापन,
इसलिए अपने आप से तकरार करता हूँ|
न चाहते हुए भी,तुझसे ही प्यार करता हूँ||

तेरी खामोशी मुझे डराती हैं,
तुझे खोने के डर से नही मैं इनकार करता हूँ|

आख़िर इंसान हूँ मैं,कब तक इंतज़ार करूँ तेरा,
फिर भी मैं इज़हार-ए-इश्क आखरी बार करता हूँ|
नादान हूँ, तुझसे ही प्यार करता हूँ||

अगर "न" हैं तेरी तो, खत्म यह करार करता हूँ|
और फिर से तेरी "हाँ" का इंतज़ार करता हूँ||

1 comment:

Unknown said...

bhai mat likha karo yar.. kyonki aap to likh ke chale jate ho par padne wale ka to poora din soch soch ke barbad ho jata hai..


HARSH SONI

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