मैं ही हमेशा इजहार करता
हूँ,क्यों तेरे जवाब का इंतज़ार करता
हूँ|यही खता मैं बार बार करता
हूँ,न चाहते हुए भी तुझसे ही प्यार करता हूँ||
शायद नादान हूँ तेरी फितरत से
जालिम,क्यों तेरी सोच में वक्त बेकार करता
हूँ|काटता हैं मुझे
अकेलापन,इसलिए अपने आप से तकरार करता हूँ|
न चाहते हुए भी,तुझसे ही प्यार करता
हूँ||तेरी खामोशी मुझे डराती
हैं,तुझे खोने के डर से नही मैं इनकार करता हूँ|
आख़िर इंसान हूँ मैं,कब तक इंतज़ार करूँ
तेरा,फिर भी मैं इज़हार-ए-इश्क आखरी बार करता
हूँ|नादान हूँ, तुझसे ही प्यार करता
हूँ||अगर "न" हैं तेरी तो, खत्म यह करार करता
हूँ|और फिर से तेरी "हाँ" का इंतज़ार करता
हूँ||
1 comment:
bhai mat likha karo yar.. kyonki aap to likh ke chale jate ho par padne wale ka to poora din soch soch ke barbad ho jata hai..
HARSH SONI
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