Tuesday, March 31, 2009

कलम


कलम चले तो वक्त का सीना फाड़ दे,
कलम रुके तो इतिहास का पहाड़ दे|
कलम में इतना पैनापन हैं,
की जब लड़े,सताओ को उखाड़ दे ||

कलम!सच का हमेशा साथ दे,
कलम!खुशियों की फुहार दे|
कलम !कमजोर को अपनी ढाल दे,
कलम!अकेलेपन से पार दे|
जब भी चले मेरी कलम!
मुसीबत को हुँकार दे||

कलम !जज्बात कागज़ पर उतार दे,
कलम !खूबसूरती को निखार दे|
कलम !हकीकत को उभार दे,
कलम !देश को अभिमान दे||

मेरे लिए बस यही दुआ करो,
जब भी चले मेरी कलम,
सच्चाई का प्रमाण दे||

1 comment:

Unknown said...

मिथ्या जीवन के कागज पर सच्ची कोई कहानी लिख
नीर क्षीर तो लिख ना पाया पानी को तो पानी लिख
सारी उम्र गुजारी यूं ही रिश्तों की तुरपाई में
दिल का रिश्ता सच्चा रिश्ता बाकी सब बेमानी लिख
हार हुई जगत दुहाई देकर ढाई आखर की हर बार,
राधा का यदि नाम लिखे तो मीरां भी दीवानी लिख।
इश्क मोहब्बत बहुत लिखा है लैला-मंजनूं, रांझा-हीर,
मां की ममता, प्यार बहिन का इन लफ्जों के मानी लिख।।
पोथी और किताबों ने तो अक्सर मन पर बोझ दिया
मन बहलाने के खातिर ही बच्चों की शैतानी लिख
कोशिश करके देख पोंछ सके तो आंसू पोंछ
बांट सके तो दर्द बांटले पीर सदा बेगानी लिख।।

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