Saturday, March 28, 2009

दिख भी जाते हैं तो कतरा के निकल जाते हैं

दिख भी जाते हैं तो कतरा के निकल जाते हैं,
वक्त के साथ तो रिश्ते भी बदल जाते हैं|
जो कभी हमारे बिना अधूरे थे,
आज हमसे कोसो दूर नज़र आते हैं||

शायद इंसान की फितरत में है यह,
गिरगिट की तरह रंग बदलते जाते हैं|
जिसके लिए जिया करते थे वोह,
आज आपस में दुश्मन कहलाते हैं||

हम तो समझते थे की पत्थर भी पिघल जाते हैं,
पर यहाँ तो ख़ुद अपने ही ठोकर लगाते हैं|
हम तो उनकी मोहब्बत में गिरफ्तार हैं यारो,
ठोकरे खा के भी नासमझ ही कहलाते हैं||

जिन पर भरोसा किया करते थे,
वक्त आने पर वोही लोग बदल जाते हैं|
अब तो दिख भी जाते हैं तो कतरा के निकल जाते हैं,
छोड़ो यारो!!क्यो हम उनके लिए आँसू बहाते हैं [;) ]||

1 comment:

Unknown said...

thankx buddy its so nice

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