तू ही बता,ऐ दिल मेरे,
मैंने तो हमेशा तेरा ही कहाँ माना हैं |
मेरे इस दीवानेपन को क्या समझूँ ?
लगता हैं मैंने इश्क को कहाँ जाना हैं??
हजारों सपने बोये मैंने,
पर शायद फूलों को तो,
सिर्फ काँटों को साथ निभाना हैं|
जहाँ गीतों की महफ़िल सजनी थी,
वहां सिर्फ सन्नाटो का ठिकाना हैं||
यह कैसा इन्साफ हैं?
इश्क की तपिश में जलता सिर्फ परवाना हैं|
कोई इसे पागल समझे,
या कोई कहे दीवाना हैं||
ऐ दिल अब तू ही बता!!
सिर्फ तुने ही इस मासूम से इश्क को
अछे से जाना हैं ,जाना हैं ||
4 comments:
बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति ।
बेहतरीन!
बहुत सुन्दर रचना
अच्छी रचना , बधाई
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