कभी रोता हूँ,कभी हँसता
हूँ,हर इंसान के किसी कोने में,"मैं" बसता
हूँ|उस की हर चाहत को,थोड़ा ही सही,मैं,समझता हूँ ||
कभी दौड़ता हूँ,तो कभी थक कर बैठ जाता
हूँ,अपनी जीत,अपनी हार,सब पर मुस्कराता
हूँ|हारना भी जरुरी हैं,इस बात को भी मैं,समझता
हूँ||जलता हैं परवाना,शंमा के पास जाने पर,
ख़ुद दीवाना हूँ|
इसलिए परवाने की इस चाहत को भी मैं,समझता हूँ||
चाहे आग की तपीश हो,या किसी बेसहारा का गम
लिखता हूँ,इसलिए हर दर्द समझता हूँ|
अगर किसी जंग में अकेला हूँ तो क्या,
मैं हर वक्त इस कलम को,अपनी ताकत,समझता हूँ |
1 comment:
the peom really describes u . i am really happy to know the other hidden side of your personality. i too feel that your potential is in your creative , reality writing... continue to do .. the teacher in me wishes , blesses u to grow in all horizons
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