रोता हूँ आज भी मैं अकेले में
भीड़ में भी तनहा हूँ,इस जिंदगी के मेले में
सूरज की रोशनी ढूंढ़ता हूँ आज भी अँधेरी रातों में
उलझ जाता हूँ मैं,अपनी बनाई बातों में
अश्क बहाता हूँ मैं अपनी चाहत की यादों में
और दीया लिए घूमता हूँ मैं तेज़ बरसातों में
क्यों गुम हो जाता हूँ मैं लोगो की आवाजों में
और अपनी आवाज़ छुपा लेता हूँ इन बेसुरे से साजो में
जिंदा हूँ अपने सपने,अपने अरमानो में
आज पूछा जाता हूँ न अपनों में,न बेगानों में
जिंदा लाश बन बैठा हूँ मिट्ठी के तहखानों में
फिर भी न जाता हूँ मैं इन रंगीन मेहखानो में
रोता हूँ जब आज भी मैं अकेले में
कश्ती बन बह जाता हूँ अपने अश्को के रेले में
भीड़ में भी तन्हा हूँ इस जिंदगी के मेले में
1 comment:
creative......keep it up...!
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